प्राणधारणा के शब्द मैले में मैं एक नन्हीं सी मुसाफिर ,
मेरे जिस्म की महक से मेरी हँसती को बतलाती फिर ।
दिल की आरजू पर कोई रखे तराजू यह मुझे स्वीकार नहीं ,
जिन्दगी में रंग भर , मैं देती आकार ।
नील गगन में हैं मेरा आशियाना ,
पंखों में उड़ान भर मुसिबतों से करना हैं सामना।
आकाश में उड़ान से न मैं डरती ,
दिल के ज्जबातों को मैं बयाँ हैं करती ।
मंजिल दूर पर सपने को हैं पाना ,
खेल में सर्वप्रथम हैं आना ।
गगन को शब्दों की पहनाती मैं माला ,
मैं पंतग आओ तुम्हें दिखती मेरी कला ।
- टिशा मेहता
( पंद्रह वर्ष की हिन्दी तथा अंग्रेजी की लेखिका )
Email id : teeshamehta30@gmail.com
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