बदलती हैं परिस्थितियाँ, बदलती ये दुनिया ,
दृढ़ मानसिकता का बंधन बोध कराती मैं मुनिया ।
क्या होती ये खुशी , क्या हैं गम ?
आखिरी मोड़ चीजे होती बराबर , बस लगाना हैं दम ।
कॉफी समान जिन्दगी कभी कड़वाहट देती तो कभी मिठास ,
कड़वाहट नजरअंदाज कर , मिठास पर जोर देना कराती जिन्दगी पल-पल आभास ।
ऊषा ही सत्य जैसे स्वदिष्ट कॉफी की महक,
असफल होना असंभव , सफलता पर पूरा हैं हक।
जिसने जीता ये खेल ,
पाया हैं उसने कदम-कदम पर खुद को फेल ।
दबती हैं रोज कई आवाजे मेरे वतन ,
इंसानियत बन गई एक नाम कहता मेरा मन ।
हाथ में हैं एक कॉफी का प्याला ,
अन्तकाल हैं बस , यही लगता जीना प्यारा ।
© टिशा मेहता
(पंद्रह वर्ष लेखिका हिन्दी तथा अंग्रेजी की )
Email id : teeshamehta30@gmail.com
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