आओ सुनातीं मैं गल्प जिन्दगी की ,
दिल के एक कोने में छिपी बातों को आज मैं बतलाती ।
मैं कहती चलती मेरे लिए तो जिन्दगी ही मेरा दिन आज हैं,
यही जीने का मेरा राज हैं ।।
चेहरे पर मुस्कान हैं , आँखो में नमी नहीं ,
जुबाँ पर कहने को हैं बहुत कुछ , पर कभी लब्जों में बयां नहीं करती ।
खेलती चलती मैं शब्दों से ,
कभी गिरती , कभी उठती खुद ही खुद से लड़ती चलती ।।
पलकें बिछाएँ खुद को खोजती बातों में ,
अरमानों की चादर ओढ़ सोती रातों में ।
बनती चलती खुद की दोस्त जिन्दगी की मुसाफात में ,
खुद से हारना को कहती आफत मैं ।।
बाते हैं कुछ अनकहीं सीं ,
शब्दों के इस मैले में लिखती चलती वहीं कहानियाँ ।
बस शब्दों के इस खेल में खुद को पहचान जाती ,
मैं पागल न जाने क्यों खुद से प्यार कर बैठती ।।
- टिशा मेहता
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