" अरे !जाओ जाओ ,बोला ना इस पर हमारा हक है, हमारा रंग चढ़ेगा "|
दबी दबी सिसकियां अपना वजूद तलाश रही थी|
" ऐसे कैसे तुम्हारा हक हो गया ,हम नहीं छोड़ेंगे! हमारा रंग लगेगा"|
सिसकियां परेशानी में बदल चुकी थी|
" तुम दोनों बात मानो , इस पर हमारी मीलकीयत है"|
परेशानी अब अनकहे मौन की तरफ जा रही थी|
"सीधे तरीके से मान जाओ ,समझा दिया ना हमारा हक है"|
अनकहा मौन अब चित्कार में बदल चुका था|
" तुम सब होते कौन हो मुझे अपने रंग में रंगने वाले ,याद रखो मुझसे तुम सब का वजूद है, तुमसे मैं नहीं हूं| सद्भावना का रंग सबसे गहरा है, माँ हूँ तुम चाराे की ,ममता के रंग में रंगों मुझे|"
टीना सुमन
मौलिक रचना
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