कपड़ो छोटे नहीं
सोच छोटी होती है।
बलात्कार के नाम पे सबकी यही बोली होती हैं।
पर मेरे कुछ सवाल हैं
जो जिसमे शामिल हम तुम और सारा समाज हैं ।
क्यों तुम्हारे सच्चे दोस्त घर के बाहर वाले होते हैं।
क्यों पहले की तरह हम सह परिवार नही रहते हैं।
क्यों बच्चे कम उमर में ज्यादा आज़ाद होते हैं ।
क्यों नहीं पढ़ते वो धर्मिक और संस्कारो की किताबें।
क्यों मोबाइल और इंटरनेट उनके लिए अनलिमिटेड मौजूद होते हैं
क्यों वो बचपन से देर रात में सोते हैं ।
क्यों वो अपनी तकलीफ गैरों के संग रोते हैं ।
क्यों हम नशा करके इतना ख़ुश होते हैं ।
गंदे गाने।
गंदे फ़िल्मे।
गंदे सीरियल ।
ग़लत दोस्ती ।
आख़िर क्यों बच्चों ये सब हमारे आँखों के सामने पिरोते हैं।
आख़िर क्यों हम ये सब गलतियां चुप चाप सह लेते हैं ।
बचपन से ही क्यों नहीं
आख़िर क्यों नहीं ।
उनकी मानसिकता को झिंझोर देते हैं ।
सिर्फ Dp बदलने और Candle मार्च से इंसाफ नहीं होता हैं ।
कभी जा के देखो निर्भया ,आसिफा, दिव्या , संस्कृति , ट्विंकल , प्रियंका के घर उनका परिवार कैसे आजभी सुकून से न सोता हैं।
इसलये सिर्फ छोटी सोच का दोष नहीं होता हैं.।
छोटी सोच छोटी सोच ऐसा बोलने से कुछ नही होता हैं ।
खुद समझो और अपनों से प्यार करो
अगर परिवार हो तो वैसा ही व्याहार करो।
दूसरो की सोच बदलने से पहले खुद की सोच पर वार करो
पहले खुद को बदलो फिर हा हा कार करो ।
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