क्योंकि अब तुम हमदम हो ।
और में नामहरम तो तुम उसका ख़याल रखना।
थोड़ी ज़िद्दी है , मग़र उतनी ही नादान भी ।
तो उससे मुख़ातिब होते वक़्त थोड़ा इत्मिनान रखना ।
दाखिल होते है ज़िन्दगी में वो मेज़बानों से पेश आएगी।
मगर तुम उसको सदा अपना मेहमान रखना ।
उसकी हर आवाज़ पर उसके तरफ दौड़ जाना ।
जैसे मुसलमान का लिहाजे अज़ान रखना ।
कुछ लहासिल ख्वाइशें भी होंगी उनकी ।
मग़र बदगुमानी ना करना ज़िंदा अपना ईमान रखना।
किसी शाम को जब उसे बाहर खाने की हाजत हो ।
तुम साथ मे जाना फिर चख के हर समान रखना।
साल बदला और हमारा रिश्ता भी बदल गया ।
तुम्हारे साथ भी ऐसा ना हो इसका ऐहतराम रखना ।
क्योंकि अब तुम हमदम हो ।
और में नामहरम तो तुम उसका ख़याल रखना।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Very nice
Thank you so so much dear
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