मोहब्बत ।
मोहब्बत ।
मोहब्बत की कमी ?
वाहिद यही तकलीफ दोहराती है।
इज़्जत में उन्हें मोहब्बत नज़र नहीं आती है।
हमारी नज़र में इज़्जत ही मोहब्बत है।
ये मामूली सी बात वो समझ नही पाती है।
हम कितना सब्र करे ?
वो कब समझेंगे हमें ?
ये बात हमे हर लम्हा खाती है ?
वो गैरों की सलाह में बहती जाती है।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice u wrote
Thank you so much mam
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