दिल्लगी
काश के दिल्लगी का भी कोई दस्तूर होता । हम जो दिल न लगाते तो भी हमारा ही कुसूर होता । तुम ज़माने की सोच लो । हमें तो तुम्हारा हर फैसला आज भी क़ुबूल है कल भी मंज़ूर होता। मंज़ूर : accept .

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by talib

22 Oct, 2020

क़सूर , दस्तूर , क़ुबूल।

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