Shah طالب अहमद
22 Oct, 2020
दिल्लगी
काश के दिल्लगी का भी कोई दस्तूर होता ।
हम जो दिल न लगाते तो भी हमारा ही कुसूर होता ।
तुम ज़माने की सोच लो ।
हमें तो तुम्हारा हर फैसला आज भी क़ुबूल है कल भी मंज़ूर होता।
मंज़ूर : accept .
Paperwiff
by talib
22 Oct, 2020
क़सूर , दस्तूर , क़ुबूल।
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