Shah طالب अहमद
24 Feb, 2022
एक चिट्ठी बिना पते की
तबस्सुम देख कर उसकी चिरागों के ठुमके लग रहे।
देखो उसके रुखसारो के आड़ से तारे भी उसके झुमके लग रहे।
सुर्ख़ लिबास।
हुस्न मेहताब।
शाल की सिलवटों में मेहराब लग रहे।
उसे कोई अर्श का कह रहा तो कोई मल्लिका ,मेरे चांद के टुकड़े पर सबके अंदाजे लग रहे।
Paperwiff
by talib
24 Feb, 2022
#Microfablecontest #letter
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