एक चिट्ठी बिना पते की
तबस्सुम देख कर उसकी चिरागों के ठुमके लग रहे। देखो उसके रुखसारो के आड़ से तारे भी उसके झुमके लग रहे। सुर्ख़ लिबास। हुस्न मेहताब। शाल की सिलवटों में मेहराब लग रहे। उसे कोई अर्श का कह रहा तो कोई मल्लिका ,मेरे चांद के टुकड़े पर सबके अंदाजे लग रहे।

Paperwiff

by talib

24 Feb, 2022

#Microfablecontest #letter

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