हर रोज़ अपने आप से लड़ रहा हू मैं।
गैरों की गलतियों की वज़ह से अपनो से झगड़ रहा हू मैं।
घर से बाहर जाने को क्यों अड़ रहा है तू।
क्या अपनों के साथ रहने से सड़ रहा है तू।
पत्थर जो उठाये , तो डंडे भी सहना ।
क्यों डॉक्टरों को मारने का किया काम घिनौना।
अपनी गलतियों की सज़ा सबको क्यों देना।
अब जो मरोगे तो किसी से मदद को भी ना कहना।
हाथ को धोना।
खाँसी , छीक और अपनों से भी थोड़ा दूर है रहना ।
कुछ वक्त तक ही ये सब है सहना।
अपने और अपनों की जिंदगी के लिए घर पे ही रहना।
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