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2k19_some unspoken truth

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Shah  طالب  अहमद
Shah طالب अहमद 30 Dec, 2019 | 1 min read

तेरे जाने के बाद तुझे याद करता हूँ ।

अब नींद के लिए आईने से बात करता हूँ ।

खुद से लड़ लड़ के हमने कमाई हैं ।

तेरे हिस्से शेहनाई मेरे हिस्से तन्हाई हैं ।

तेरे साथ गुज़रा हर मंज़र पहले गुदगुदाता फिर रुलाता हैं ।

सच ही कहती थी तुम प्यार ।

प्यार ,यार के जाने के बाद समझ आता हैं ।

जब से तेरी साँसे किसी और कि साँसों से घुली हैं ।

कसम से याद आती हो पर अब शक्ल धुंधली हैं ।

ज़ेहन में सिर्फ तेरा खयाल ।

लम्हा लम्हा ऐसे गुज़रता हैं जैसे गुज़र रहा हो पुरा साल।

रिश्ते का नाम नहीं था, बस यही एक इल्ज़ाम दिया हैं ।जिसने नाम दिया बस यही एक बेहतर काम किया हैं ।

वो ले गया तुझे करके चंद रस्मे कसमे और वादे ।

और पक्की कर गया मेरी गलतियों  की बुनियादें ।

बड़ी मशक्कत और फ़िक़्र से हर अल्फ़ाज़ चुना हैं ।

तेरे आखरी ज़िक्र में तेरे हर पहलू को बुना हैं ।

वक़्त आ गया था , तो हो गये हम जुदाह ।

मुबारक हो तुमको नया साल नई जिंदगी और तुम्हारा निकाह।

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Shah طالب अहमद

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