"ये शादी नही होगी, आप बारात वापस ले जाइए.." मंडप में लाल जोड़े में सजी दुल्हन विधि ने अचानक से कहा।
पूरे हॉल में सन्नाटा गूंज गया, घराती और बाराती हर किसी की नज़र विधि पर आकर टिक गई थी।
"तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो विधि", दूल्हे की पोशाक में सजे वैभव ने गुस्से में लाल पीले होते हुए कहा और विधि को एक कोने में खींच कर ले गया।
"क्या नाटक है ये? बस फेरे होने बाकी है और तुम कह रही हो ये शादी नही होगी। शादी कोई मज़ाक है क्या", वैभव ने गुस्से में कहा।
"मैं भी तो यही कहना चाह रही हूं की शादी कोई मज़ाक नही है..."
"पर हुआ क्या है कुछ तो बताओ..."
"तुम्हे सच में नही पता क्या हुआ है वैभव, या सब जानते हुए भी अनजान बन रहे हो...जब से बारात आई है कभी स्वागत में कमी निकाली जा रही है तो कभी साज सजावट को लेकर बातें बन रही है। अभी तुम्हारे कुछ रिश्तेदार खाने में कमी निकाल रहे थे तो कुछ ने तो ये भी कह दिया मेरे पापा कंजूस है सस्ते में विदा कर रहे हैं अपनी बेटी को। यहां तक तो फिर भी ठीक था रही सही कसर तुम्हारे पापा ने ये कह कर पूरी कर दी....भिखारियों का परिवार लगता है नही तो पांच लाख नकदी और एक मोटरबाइक तो दे ही सकते थे", विधि बोलती जा रही थी।
"अरे वो तो पापा ने यूं ही गुस्से में कह दिया। मैं बात कर लूंगा उनसे, तुम चलो फेरों का समय निकल रहा है", वैभव ने बात को संभालते हुए कहा।
"नही वैभव ये शादी नही होगी। तुम्हारे लिए ये भले ही छोटी सी बात हो पर मेरे लिए मेरे पापा के सम्मान और इज्ज़त से बढ़ कर कुछ नही है। एक बाप अपनी बेटी की शादी को लेकर उसी दिन से सपने संजोने लगता है जिस दिन वो पैदा होती है और जरूरत पड़े तो खुद को बेचकर एक बेटी को विदा करता है। तुम आज सबके सामने मेरे परिवार का अपमान होते देखते हुए भी कुछ ना बोले तो आगे चलकर तुम साथ दोगे मैं कैसे मान लूं। तुम्हारे अंदर सही का साथ देने की हिम्मत ही नही है लेकिन मैं जो सही है वही बोल रही हूं और जो सही है वही करूंगी। एक बेटी के लिए उसके पिता की इज्जत से ज्यादा कुछ नही होता," विधि एक सांस में बोलती चली गईं।
"पर ऐसा करने से तुम्हारी या तुम्हारे परिवार की समाज में कितनी बदनामी होगी ये सोचा है तुमने...." वैभव ने एक और नाकाम कोशिश की।
"बदनामी तो तुम्हारे परिवार की भी कम नही होगी वैभव। समाज में मेरे परिवार की बदनामी की चिंता तो तुम्हें तब करनी चाहिए थी जब मेरे पापा तुम्हारे घरवालो के सामने गरदन झुकाए हाथ जोड़े खड़े थे। समाज को जवाब देने की जरूरत तुम्हें पड़ेगी की क्यों बारात को दरवाज़े से लौटा दिया गया....मैं ऐसे परिवार का हिस्सा हरगिज़ नही बनूंगी जहां मेरे परिवार का सम्मान ना हो..."
"आप सब अब वापस जाइए, यहां कोई कन्यादान नही होगा आज", विधि ने हाथ जोड़कर आये बारातियों से कहा और नम आंखों के साथ अपने पापा के गले लग गई..."
धन्यवाद।
स्वाति रॉय
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