"मुझे अगर कोई चीज़ पसन्द आ जाए तो मैं उसे हासिल करके ही मानता हूं।" एक अट्टहास के साथ गौतम ने अपनी पत्नी पूर्णिमा से कहा।
"मतलब", विस्मित नजरों से गौतम को देखते हुए पूर्णिमा ने पूछा।
"कितनी नादान हो तुम जो पिछले पंद्रह सालों में ये भी नहीं समझ पाई। ये महंगे सजावटी सामान, अपने बंगले के पीछे वाले तालाब में तैरती वो रंग बिरंगी विदेशी मछलियां....बहुत पसंद आई थी मुझे और इसलिए मैंने उनकी कीमत नही पूछी बस हासिल कर लिया। ठीक उसी तरह से जिस तरह से मैंने तुमको...." कहते कहते गौतम रूक गया।
रूक क्यों गए, बोलो मुझको क्या....मुझको क्या गौतम? तो क्या मुझे भी सिर्फ हासिल करना ही उद्देश्य था तुम्हारा? तुम तो प्यार करते थे मुझसे...जीवनसाथी के रूप में मुझे अपने साथ देखना चाहते थे।
"जीवनसाथी.... माई फुट", मैं तो बस हासिल करना चाहता था तुमको, अपने से नीचे देखना चाहता था तुमको...तुम पहली थी जिससे मुझे हारना पड़ा था। अव्वल आने वाला मैं हर चीज़ में पिछड़ रहा था... सिर्फ और सिर्फ तुमसे। यहां तक की स्नातकोत्तर के रिजल्ट की लिस्ट में भी मैं दूसरे स्थान पर था...और वजह एक ही थी "तुम"। आज तुम मेरी हो, आज मेरी पसन्द से तुम सजती हो, इस घर को जो सजाया है तुमने वो भी मेरी ही पसन्द की चीज़ों से....आज मेरी पसन्द ही तुम्हारी पसन्द है... तुम तो सांस भी मेरी पसन्द के वातावरण में लेती हो। आज मैं फिर से अव्वल हूं.... हां अव्वल। गौतम अपने ही दंभ में बोले जा रहा था।
पूर्णिमा जब सुन ना पाई तो उठ कर घर के बाहर की ओर भागी और सीधी रुकी घर के पीछे बने तालाब के पास जाकर....आंखों में आंसुओं का समुंदर उमड़ रहा था। जा बैठी उस तालाब के किनारे जहां वो घण्टों वक्त बिताती थी उन रंग बिरंगी मछलियों संग... जो कभी उसके सुख दुख की भागीदार थी, आज उनसे नजरें मिलते ही वो भी उसे परिहास करती सी लगी जैसे कह रही हो..."पागल, तू भी हमारी तरह इस तालाब को अपना समुंदर समझ बैठी।"
धन्यवाद।
स्वाति रॉय
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
वाह
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