मैं धरा हूं।

पृथ्वी बचाओ

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swati roy
swati roy 07 Jan, 2020 | 1 min read

मैं धरा हूं.... हां आप सबकी अपनी धरा। मेरे जन्म को लेकर अलग-अलग मत होते हुए भी मैंने किसी मे कोई मतभेद नहीं किया। चाहे वो जीव-जंतु हो, पेड़-पौधे हो या मनुष्य हो सबका समान रूप से शुद्ध हवा-पानी देकर पोषण किया है।

परन्तु मनुष्य अपने थोड़े से फ़ायदे और लोभ-सिद्धि के लिए मुझे नुकसान पहुंचा रहा है। पौलोथिन का अतिरिक्त इस्तेमाल कर और रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग कर मुझे बंजर बना रहा है, बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करने के लिए हरे-भरे जंगलों को साफ कर रहा है जिससे हवा और पानी प्रदूषित हो रही है और प्रदूषण की वजह से खुद का भी नुकसान कर रहा है जिससे वो कई तरह के मानसिक और शारिरिक रोगों से ग्रस्त होता जा रहा है। मुझे धरती मां कहते है लेकिन एक मां का ही ध्यान नहीं रख पाते हैं। भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोरण आदि जैसी आपदाओं की संख्या की बढ़ती जा रही है जिसका जिम्मेदार भी मनुष्य है। जंगलों में रहने वाले जीव-जंतु और समुद्र, नदी और तालाब में रहने वाले जलीय जंतु खत्म होते जा रहे है।

मैं बस इतना ही चाहती हूं कि सबको साफ पानी, शुद्ध हवा और स्वस्थ परिवेश मिले। फिर से पहले जैसे हरियाली छा जाए, बच्चें, बड़े फिर से नदी का पानी पी सके, ऑक्सीजन मास्क के बगैर खुली और ताज़ी हवा पा सके।

अभी भी समय हैं प्राकृतिक संपदाओं को बचा लो, अभी भी समय है मुझे बचा लो....अभी भी समय है खुद को बचा लो।

धन्यवाद।

स्वाति रॉय

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