एकता की शादी में दो हफ़्ते ही बाकी थे। अपनी नौकरी से इस्तीफा दे चुकी थी वो, शादी से चार दिन पहले उसे अपने शहर लौटना था। खुश थी एकता ये सोचकर कि ऋषि के परिवार वाले उसको नौकरी करने देंगे। ऋषि के परिवार वालों ने कोई मांग भी नहीं रखी थी| उन्हें बस शादी की जल्दी थी क्योंकि ऋषि की मां कैंसर की मरीज थी और अपने बेटे की शादी देखना चाहती थी। एकता अपने मम्मी पापा से एक ही बात कहती थी आप मेरे लिए ऐसा परिवार देखना जहां मैं नौकरी कर सकूं, बाकी मुझे कुछ और नहीं चाहिए। सोचते सोचते एकता ऑफिस पहुंची थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने देखा उसकी दीदी का फ़ोन था जो अमेरिका में अपने परिवार के साथ सेटल्ड थी और उसके आने में अभी चार दिन बाकी थे।
एकता ने फोन उठाया ही था की दूसरी तरफ से दीदी गुस्से में बोलने लगी शादी की पूरी तैयारी हो चुकी है। रिश्तेदारों में खबर दे दी गई है और ऋषि के परिवार वाले अब दो हफ़्ते पहले एक बड़ी गाड़ी की मांग कर रहे हैं। पापा कहां से लाएंगे इतने रुपये और सब कुछ जानते हुए भी तू चुपचाप शादी की तैयारी में लगी है।
इतना सुनते ही एकता के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। कुछ देर ऎसे ही चुपचाप खड़े रहने के बाद एकता ने खुद को सम्भाला और सबसे पहले अपना इस्तीफा वापस लिया। फिर उसने घर पर फोन लगाया और अपने घर पर बात की। अपने ताऊजी जिनके एकता काफी करीब थी से पता लगा कि ऋषि की सबसे बड़ी दीदी जीजाजी जो विदेश से आ चुके हैं और कहा है कि हमने कुछ और मांग नहीं रखी है तो आप बस एक बड़ी गाड़ी का इंतजाम कर दीजिए।
एकता ने मन ही मन कुछ सोचते हुए बस का टिकट बुक किया और निकल पड़ी अपने शहर जाने के लिए। शाम के चार बजते-बजते एकता अपने शहर में थी और सीधे ऋषि के घर पहुंच गई। अचानक एकता को सामने देख सब आश्चर्यचकित हो गये क्योंकि उसके आने में अभी भी कुछ दिन बाकी थे। एकता ने शादी करने से इनकार करते हुए अपने गले से चेन और अंगूठी निकाली और ऋषि की मां के हाथ में पकड़ा दी और कहा "एक लड़की और उसके परिवार की इज्जत की कीमत एक बड़ी गाड़ी से कहीं ज्यादा है।"
इतना बोल एकता ने बाहर की तरफ कदम बढ़ाए और अपने मन ही मन में कहा, "कोमल हो सकती हूं, कमज़ोर नहीं।"
धन्यवाद।
स्वाति रॉय
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