इंसानियत

समाज को अभी भी अच्छे इंसान बाकी है।

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swati roy
swati roy 03 Mar, 2020 | 1 min read

काम खत्म कर घड़ी पर उसने नज़र डाली। आठ बजते देख फटाफट निकली तो आखिरी जाती हुई बस पकड़ कर भगवान का शुक्रिया अदा किया। लगभग खाली बस में उसने एक खिड़की पकड़ जंगले पर माथा टेक आंखे मूँद ली। ठान्डी हवा ने आँखों को झपकाया ही था कि उसे अपनी दाहिनी गिनती पर कुछ स्पर्श महसूस हुआ। लगा कि कोई यात्री बैठा होगा, सोचिए उसने फिर से झपकी ली ही थी कि फिर वही स्पर्श कंधे से थोड़ा नीचे गिरने पर महसूस किया .... क्रमशः दो तीन बार जब ऐसा हुआ तो उसने जबरन आंखे खोली और देखा बगल की सीट पर। बैठा वो शख्स चोर नजरों से इधर-उधर देखती हुई फिर से छूने की कोशिश कर रही है। उसके थोड़े सजग हो सिमट कर बैठते ही शख्स को अपनी तरफ सरकते देख घबरा कर बस में बैठे लोगों की ओर घुमा घुमाई ... । कुछ अपनी सीटों पर बैठे ऊँघ रहे थे तो कुछ की नजरें उसी पर टिकी थी और वो उसके साथ होने वाली हरक़तों का आनंद ले रहे थे। किसी आकस्मिक की आशंका से ही उसका मन कांप उठा और देखा बगल में बैठा वो शख्स एक कुटिल मुस्कान लिए उसी की तरफ देख रही है। बाहर से आती ठंडी हवा में भी अब सुकून नहीं लग रहा था की तभी उसने देखा कि कन्डक्टर उसी की सीट की तरफ बढ़ रहा है .... वो घबरा कर पसीने-पसीने हो गया है। उसने चीखने की कोशिश करी लेकिन आवाज़ भी ना दी।

कन्डक्टर को अपने सटीक दृश्यदीक आया देख वह कुछ बोलने को हुआ ही था कि कन्डक्टर की आवाज़ उसके कानों में पड़ी थी ...।

"बस में तो ऐसी जगह होते हुए भी यहीं बैठना जरूरी है क्या, कहते हुए उस शख्स को वहाँ से उठा दूसरी खाली सीट पर बैठा दिया और उसकी तरफ घूम कर बोला दीदी चिंता ना करें, आपको सही सलामत आपकी स्टॉप पर उतारने की जिम्मेदारी" है ”। "बोलते हुए वो फिर से बस के दरवाज़े की तरफ बढ़ गए और जो लोग अब तक नयन-सुख ले रहे थे, अब कोई ऊँघ रहा था तो कोई बगलें झांक रहा था।

धन्यवाद।

स्वाति रॉय

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