लोग उगते सूरज को
प्रणाम करते हैं
पर न जाने क्यों,
कमरे की खिड़की से
अस्त होते सूरज को निहारना
मेरी आँखों को बहुत
सुकून देता है
यूँ लगता है कि वो
धीरे - धीरे
आकाश से ज़मीं पर
आते हुए,
मेरे मन में
कभी उम्मीदों के दीप जलाता है |
"रात की कालिमा चाहे जितनी घनघोर हो
सुनहरी किरणें अवश्य प्रस्फुटित होती हैं |"
तो कभी आशाओं के बाँध बंधाता है
गिरना, चढ़ना सहज है
बस गिर कर फिर खड़े होने की हिम्मत होनी चाहिए |
तो कभी मुझसे ये अस्त होता सूरज
जिंदगी के ढेरों फलसफे बतियाता है |
उदय और अस्त होना स्वाभाविक है
ठीक वैसे ही जैसे जिंदगी में सुख - दुख
का मिश्रण सहज है |
हर किसी के जिन्दगी में कुछ पल
इतनी ऊंचाई के होते हैं कि
लोग उसे अर्घ्य देने लगते हैं
पर तब तक जब उसका तेज प्रचंड है
और प्रचंड तेज को भी एक न एक दिन
कुछ समय के लिए ही सही पर
ग्रहण अवश्य लगता है |
और तब अपनी हानि के डर से
सावधानीवश लोग कुछ समय
पूर्व से ही अपने आस-पास
सूतक का कवच घेर लेते हैं
और फिर पूजा - अर्चना करना
तो दूर, उस तेज से डर उसे
देखना भी गवारा नहीं करते |
इसलिए अपना सब कुछ
इश्वर के चरणों में अर्पण कर
स्वयं के जीवन को
अनन्तकाल के लिए किसी भी तरह के
ग्रहण लगने से
सुरक्षित कर लो |
सुरभि शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
प्रेरणादायक रचना
शुक्रिया
Please Login or Create a free account to comment.