"भैया ऑरेंज केंडी है? अवनी ने दुकानदार से पूछा
हाँ जी है, कितने दे दूँ?"
"आप खाओगे? मैंने नील से पूछा
नहीं, उसने कहा|"
"भईया सिर्फ एक दे दो, कितने की है?
मैडम ये लीजिए, पाँच रुपये हुए |"
नील पैसे दे दीजिए
हाँ |
ऑरेंज केंडी ले हम वैसे ही हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ गए
वॉक के लिए |शहरों की हर रात चाँदनी रात ही होती है कृत्रिम बिजली से ही सही |
कुछ महीनों की शादी का खुमार अभी उतर न पाया था और न तो मायके की दहलीज लांघ लेने के बाद भी अपने बचपने का ही मोह छूटा था |जिम्मेदारियों की खनकती लाल चूडिय़ां और मचलते बचपन के मझधार में खड़ी अवनी को अभी सब कुछ खुशगवार, और रूमानी सा ही दिख रहा था |
"सुनो न नील मेरी आईसक्रीम पूरी पिघल जाएगी पार्क के बेंच पर पहले बैठ कर खा लेती हूँ कहते हुए अवनी वहीं आइसक्रीम की पहली चुस्की लेते हुए झूले पर बैठ गयी |
अवनी एक बात कहूँ? हाँ बोलो न नील, उसने एक हाथ में आइसक्रीम पकड़े हुए पलकों को अदा से झपकाते हुए कहा
आज तो ठीक है पर आगे से जब भी हम लोगों के साथ हो तो किसी के सामने कभी ये केंडी मत खरीदना, आइसक्रीम खाना हो तो बटरस्कोच, या फ्रूट आइसक्रीम ऑर्डर करना |
नासमझ अवनी ने एक हाथ से झूले की पेंग ली दूसरे हाथ में पकड़ी हुई आइसक्रीम का चटकारा लेकर अपने भौंहों को उचकाते हुए पूछा, क्यों?
स्टैंडर्ड भी कोई चीज़ होती है न अवनी अगर तुम किसी के सामने अपनी ऐसी लो - स्टैंडर्ड च्वाइस दिखाओगी तो लोग क्या सोचेंगे हमारे लिविंग स्टैंडर्ड के बारे में |
लोगों की छोड़ो नील तुम अपनी बताओ तुम्हें लोगों की सोच की परवाह है या मेरी पसंद मेरी खुशियों की?
तुम बात को गलत मोड़ दे रही हो अवनी, तुम्हारी अच्छाई के लिए ही कह रहा हूँ कि कोई तुम्हारे बारे में कोई गलत धारणा न बना सके | समाज के लिए नहीं जीना है हमें, पर जीना तो समाज में ही है न हमें | आइ होप यू अंडरस्टैंड!
मौसम में हवा बहुत ठंडी चल रही थी आज, पर दिल में अचानक कोई गर्म लावा धीरे से धधका था | अवनी झूले पर से उठ गयी पर उसका बचपना उसी झूले पर ठहर गया था अब |हाथ की आइसक्रीम अब मुँह में गए बिना मिट्टी को ठंडा कर रही थी और अवनी की आँखों में अब खुशियों का बचपन पिघल रहा था दिखावे की जिम्मेदारियों की तहों को ज़माने की खातिर |
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सुरभि शर्मा
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