चतुष्कोण

पुस्तक समीक्षा

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 17 Dec, 2022 | 1 min read

किताब - चतुष्कोण

लेखिका - मौमिता बागची

प्रकाशन - शॉपिजन


      वर्णनात्मक शैली में अलग - अलग चार कहानियों का संग्रह "चतुष्कोण" जो विभिन्न सामाजिक एवं पारिवारिक परिस्थितियों एवं मुद्दे की विवेचना करते हुए कुछ ज्वलन्त प्रश्न उठाती है तो कहीं सही और गलत को मूल्यांकित करती है 


कहानियों की विषय वस्तु - 

शुरुआत करते हैं हम इस किताब की चौथी कहानी "अवॉर्ड" से जिसमें वर्तमान समय में पुरस्कारों का प्रलोभन दिखा नए लेखकों को गुमराह करने एवं लेखकों के कम अवधि में ही ज्यादा सम्मान कमा लेने की लालसा से जन्मती परिस्थितियों से साहित्य क्षेत्र की राजनीति एवं व्यवसायिकरण को लेखिका ने बेबाकी से अपने शब्दों में प्रस्तुत करने की कोशिश की है |वास्तविकता के धरातल पर कहानी एक जगह खटकी कि एक ही घर में एक साथ पाँच वर्ष बिताने के बाद भी घर के सदस्य एक दूसरे की गतिविधियों से कैसे अनजान रह सकते हैं और ये बात लेखिका ने स्वयं भी दर्ज की है "एक ही घर में रह कर इस बात से अनजान कैसे रह सकती थी भला"! 

वहीं एक विषय और सोचने को दे देती है ये कहानी कि क्या वाकई हम टेक्नोलॉजी के युग में इतने स्वयममुग्धा हो चुके हैं कि बाकी घर के सदस्यों की भी बात हमें अब प्रचार प्रसार होने के बाद पता चलती है |फ़िलहाल इस विषय के चयन के लिए मैं लेखिका के हिम्मत की सराहना करती हूँ अपने लेखन में इस विषय को सामाजिक रूप से सबके सामने लाना इनके साहित्य सेवा एवं लेखन क्षेत्र की निष्पक्षता का प्रमाण है |


पहली कहानी पितृ - परिचय - सौतेली माँ के अत्याचारों की बहुत कहानी पढ़ी है पर सौतेले पिता....... पढ़ने के बाद सिर्फ उफ्फ... और छीः.. घृणा, दर्द, और सम्वेदना के संवेगों ने स्वत: ही दिल - दिमाग को थोड़ी देर हिला कर रख दिया, इस कहानी के बारे में ज्यादा कुछ मैं नहीं लिखना चाहती आप स्वयं पढ़ कर ही इस कहानी का मर्म समझ पाएंगे |



- दूसरी कहानी मन्नत - जिस ज़माने में ईश्वर-- के अस्तित्व को लोग सिरे से नकारने में लगे हों वहाँ ईश्वर-- को आधार बना कर कहानी की प्रस्तुति पढ़ने में मन को भली सी लगी |सोम, आभा, रेखा तीनों की जिन्दगी में देवी कल्याणेश्वरी--- का आशीर्वाद जिस तरह फलीभूत हुआ वो वास्तव में इस बात पर यकीन करने को विवश करता है कि जब जिस काम का समय आता है तभी होता है |


तीसरी कहानी सहजन का पेड़ - जो इस किताब की सबसे लम्बी कहानी है, जो भी इस किताब को पढें उनसे आग्रह है कि इस कहानी को पढ़ने के पहले लेखिका द्वारा प्रारम्भ में लिखी गयी पूर्वपीठीका अवश्य पढ़ लें,अन्यथा आप एक पाठक के तौर पर इस कहानी को लेकर भटक सकते हैं| ग्रामीण अंचल से लेकर विदेशी परिवेश तक को बाँधती इस कहानी का एक अंश रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित " अपरिचिता" से लिया गया है |इस कहानी को बुनने में पात्रों के ऊपर की गयी लेखिका की मेहनत ने कहानी को पढ़ने में सरस बना दिया है |


भाषा -   हिन्दी साहित्य का क्षेत्र इतना समृद्ध और ममतामयी है कि किसी भी भाषा के शब्द इसमें सम्मिलित किए जाए तो वो उसका दोष न होकर हृदय को एक नए अच्छे लगने वाले स्वाद में परिवर्तित हो जाती है |

सहजन के पेड़ कहानी में 

      रोहू मछली, सन्ध्या वन्दन के समय शंख - ध्वनि, प्रसाद में संदेश ये सब गांव की बंगाली पृष्टभूमि की और इंगित कर रहे हैं और इस परिवेश में लेखिका ने हरि काका से जिस सहजता से कित्ती बड़ी हुई गवा, गांव आवत रही, उम्र हुई गवा ब्रज, अवधि भोजपुरी बोलवाया है वो भाषा - दोष न होकर हमारी विविधता में एकता वाली संस्कृति का परिचायक हो गया है |बाकी अंग्रेज़ी और उर्दू शब्दों का हिन्दी में प्रयोग सामान्य हो चुका है |


लेखिका परिचय - "मौमिता बागची जी की अब तक चार पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं" कुछ अनकहे अल्फाज़ कुछ अधूरे ख्वाब, माँ की डायरी, चतुष्कोण, एकल एवं संसुमिता साझा संग्रह है |इन्हें 2020 में वुमन कानक्लेव द्वारा श्रेष्ठ लेखिका के अवार्ड से सम्मानित किया गया है |


       स्वगत अनुभूति -  कुछ कारणों से मैं किताबों की समीक्षा जल्दी नहीं लिखना चाहती पर कुछ लोग हर सीमा से परे होते हैं |मौमिता जी मेरी अच्छी मित्र हैं साथ ही संसुमिता में.  सहलेखिका भी पर ऊपर लिखी हुई समीक्षा में मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है कि सिर्फ और सिर्फ एक पाठक की तौर पर जितनी मेरी समझ है उस हिसाब से निष्पक्ष लिख पाऊँ |व्यक्तिगत रूप से मैंने जब से इनकी माँ की डायरी पढ़ी तब से मैं इनके लेखन की प्रशंसक हूँ इनकी हर किताब पढ़ती हूँ |आपकी हर किताब को पाठकों का बेहद प्यार मिले ये शुभकामना है मेरी आपके लिए |


सुरभि शर्मा 









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