सुख - सुविधाओं और आराम के शहरी चकाचौंध में
पलायन हुआ गाँव का, और दृष्टि में हेय हुए अन्नदाता|
मानवों की मानव द्वारा घण्टों के हिसाब से शुरू हुई खरीद - फरोख्त और परिवार के आराम के लिए परिवार के पास ही समय नहीं बचा |
पर यह खरीद - फरोख्त आवश्यक से अनिवार्य बनती गयी, "आवश्यकता आविष्कार की जननी है |" तो बस इस आवश्यकता के लिए शुरू हुआ "शिक्षा का व्यवसायिकरण"|
कुछ यूँ कि हर घर में एक डॉक्टर, इंजीनियर, और वकील की चाहत या फिर कोई भी हो नौकरीपेशा |
फिर आयी कुछ फ़िल्में और फैला प्रचार कि जीने दो बच्चों को उनकी मनमर्जी से "give them some sunshine, give them some rays".
सबकी अक्ल खुल गयी और अब बच्चे जीने लगे |
इस अन्तराल में कुछ ये भी हुआ कि अन्नदाता के बाद अब हमें रस्सी, जूट, खटिया, चौकी, मर्तबान, मिट्टी के घड़े आदि सब चीजें आउटडेटेड लगने लगी और हमने खुद को प्लास्टिक से अपडेट किया |
"give them sunshine, give them some rays" का नतीजा ये रहा कि शिक्षा के लिए भरे जाने वाले शुल्कों ने शिक्षालय में किताब को पीछे रख दिया और खेल - कूद, नृत्य - संगीत, दूसरे क्रियाकलाप वरिष्ठ होते गए|
बस एक मुश्किल ये रही कि किताबों का क्या उपयोग!
तो शुरू हुए कुछ सेलिब्रिटी प्रचार वाले शैक्षिक एप्प, 6 साल की उम्र से कोडिंग क्लास,कोचिंग क्लास...... |
और फिर एक दिन चर्चा में आया ऑर्गनिक फूड बस स्वास्थ्य के नाम पर शहर अब खुद को लुटाने को तैयार था| हुआ कुछ यूँ भी एक दिन कर रही थी ऑनलाइन शॉपिंग तो नजर जाकर टिक गई 2500 के बेंत के मोढ़ो पर, फिर गयी नजर दादी के रूम में रखी जैसी खटिया पर, बस ये कुछ रंगीन सी थी |मुस्कराते हुए मैं भौचक्की रह गयी |
इधर आया है एक नया दौर अब कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर बनने की दौड़ में नहीं सब सेलिब्रिटी बनने की होड़ में है |
अब होगा कुछ यूँ कि
सनातन बचेगा, धर्म बचेगा, स्त्री विमर्श बचेगा
बस कुछ नहीं बचेगा
तो वो "हमारी प्रकृति, और मानवजनित सुविधाएं"
क्यूँकी
"भविष्य के गर्भ में पल रहे हैं
स्पन्दनशील रोबोट
जो सिर्फ एक मशीन द्वारा
संचालित किए जायेंगे,
और मशीनों के पास हृदय नहीं होता |"
सो जगिये और जगाईये
बचिए और बचाईये |
धन्यवाद
सुरभि शर्मा
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