दिन की नमाज अदा कर के सालेहा अभी उठी ही थी कि सना ने उसे यूँ ही टोक दिया |
"अम्मी आज क्या दुआ माँगी अल्लाह से"?
सालेहा ने उसकी तरफ निगाहें घुमाते हुए कहा कि, यही की अल्लाह आज की तुम नौजवान नस्लों को सही अक्ल दें, सबके जेहन में जो ये धर्म और मजहब के नाम पर जहर की फसल बोई जा रही है अल्लाह इस तरह के बेजा के बवालों से हमारे प्यारे हिंदोस्ताँ को निजात दिलाएं |
अम्मी आप कहना क्या चाहती हैं? अच्छा आप ये जो हिजाब को लेकर कॉलेज में मसला चल रहा है आप उसे लेकर परेशान हो रही हैं! पर अम्मी ये तो गलत है हिजाब हमारी रिवायत का एक अहम हिस्सा है और दूसरी बात आजादी के तहत हम कैसा भी लिबास पहनें ये हमारी खुद की मरज़ी है फिर किसी भी जगह और कोई भी हमारे इस इख्तियार पर पाबंदियों को लगाने वाला कौन होता है?
बताएं अम्मी, सही कह रही हूँ न?
उफ्फ! तुम नयी पीढ़ी की यही तो समस्या है सना कि किसी भी बात की गहराई को नहीं मापते बस कहीं से कुछ भी पढ़ सुन लिया तुरन्त आक्रोश में आकर जोश में होश खो बैठते हो और गलत कदम उठा बैठते हो और तुम्हें आपस में लड़ा कर नफरत की फसल को बोने वाले तुम्हें बरगलाने का मजा लूटते हैं |
"सना ये मत भूलों की हिन्दोस्तां हमारी सरजमीं हैं जिसे कहीं पनाह नहीं मिलती उसे भी हमारी सरजमीं अपनी कोख में पनाह देती है फिर धर्म और मजहब की आजादी नाम पर इसे हर समय लहूलुहान करना बेग़ैरत होना है |"
अम्मी आपको ऐसा नहीं लगता कि आप हमारी उन रिवायतो
पर सवाल उठा रही हैं जिसकी नाफरमानी हमें गुनाहगार के कटघरे में खड़ी कर सकती है |
लाहौलविलाक़ुव्वत, मैं अपने खुदा की नाफरमानी की हिमाकत कैसे कर सकती हूँ मेरी बच्ची! सालेहा ने सना की पेशानी को चूमते हुए कहा |
मैं तो बस इतना कह रही हूँ कि तालीम देने वाली जगहें इन सब रिवायत से बहुत ऊपर होती हैं इन रोशनी देने वाली मशालों की लौ को इन सब बेजा बातों से हमें धीमी नहीं पड़ने देनी चाहिए |
और वैसे भी स्कूल कॉलेज ऐसी जगह है जहाँ शिक्षा सर्वोपरि है वो धर्म देखकर किसी को कम या ज्यादा शिक्षा नहीं देता बल्कि वो बिना भेदभाव किए सबको समान रूप से सीखाता है फिर हर जगह के अपने कुछ नियम होते हैं उसे तथाकथित आजादी के नाम पर हम यूँ ही धूमिल नहीं कर सकते |
घूंघट, हिजाब, पगड़ी, स्कार्फ आप पहनिये पर उसे कट्टरता नहीं बनाना चाहिए |
जब किसी शैक्षणिक संस्थान के कुछ अपने नियम हों ड्रेसकोड हो तो हमें उन्हें मानना चाहिए और हिजाब हमारी रिवायत का अहम हिस्सा है पर मेरी बच्ची ये जो शिक्षा हम औरतों को मिल रही है न इसकी क़ीमत मामूली नहीं है बेटी यहाँ तक पहुँचने के लिए कई नस्लों की औरतों ने कुर्बानी दी है तब तुम्हें ये शिक्षा की सुविधा मुहैया हुई है इनकी कुर्बानियों का अपमान हमें यूँ फसाद बन कर नहीं करना चाहिए |तू खुद सोच हिजाब या तालीमी खिताब में कोई एक चुनना पड़ जाए तो तू क्या चुनेगी?
"तुम्हें इल्म है , जो डॉ मेघा आंटी हैं न जिससे तू बड़ा इंसपायर रहती है वो यूँ ही इस मुकाम तक नहीं पहुँची है जब हम कॉलेज में थे तो इम्तिहान के कुछ दिन पहले ही उसका निकाह हुआ था और हमारी कॉलेज की ड्रेस झक्क सफेद सलवार - कुर्ता थी | लोगों ने उसे इम्तिहान देने से मना किया कि नयी नयी शादी हुई है सफेद लिबास कैसे पहनेगी अपशकुन हो जाएगा पर उसने किसी की नहीं सुनी और इम्तिहान देने आयी |सोच अगर वो लोगों की बातों में आकर
लिबास के चक्कर में इम्तिहान ना देती तो क्या वो इस मुकाम तक पहुँचती!
स्कूल शिक्षा बाँटने की जगह है कोई धर्म प्रदर्शन की नहीं तो उसके कायदे कानून सबके लिए एक ही होने चाहिए वहाँ मजहब की दुहाई देकर इस तरह की हरकतें बेमानी है और वैसे भी स्कूल हमें हिन्दू या मुसलमान नहीं बनाता बल्कि वो हमें इंसान बनने की तालीम देता है इसलिए बेटा मेरे हिसाब से तो तालीम जरूरी है पहले, हर सार्वजनिक जगह पर हम हिजाब पहनें पर शैक्षणिक संस्थानों में हमें उस संस्था के तहत उसके कायदे मानने में कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए |
सारी बातें सुनकर सना ने सर झुका कर कहा "जी आप सही कह रही हैं अम्मी तालीम की जरूरत लिबास की रिवायतो से बहुत ऊपर है |अल्लाह हम सबके जेहन पे जमी हुई धूल को साफ करें और हमें समझदारी भरी अक्ल से नवाजें|
टीवी से आवाज आ रही थी -
" मजहब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा - हमारा
सारे जहाँ से अच्छा.............." |
इकबाल
धन्यवाद
सुरभि शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Superb 👏 👏
शुक्रिया
Please Login or Create a free account to comment.