मुश्किलों में, 'दुआ' में होती है|
चोट लगने पर 'दवा' में होती है|
जो रक्त के कतरे - कतरे में बहती है
वो "माँ " होती है |
बचपन में,
अपनी उनींदी आँख लिए
हमारे लिए लोरी की थपकियों में होती है,
कहानियां सुनाकर खिला देने वाली
नापसन्द सब्जियों में होती है|
जिसका आँचल पकड़
बच्चों की सुबह होती है
वो माँ होती है |
तपती धूप में,
थकने पर जो छाया होती है|
फिसल कर
गिर न पडें हम,
सम्हालने वाली जो
हमारी साया होती है|
जीवन के हर डगर पर
जो रहनुमायाँ होती है
वो "माँ "होती है |
गर्भ में रख नौ महीने
हर कष्ट पर चुप रहती है |
सींचती रहती है हर पल हमें
जो प्रसवपीड़ा सहती है |
सृष्टि को एक नयी कृति
देने के लिए,
जो खुद फ़ना होती है
वो "माँ" होती है
वो "माँ" होती है |
धन्यवाद
सुरभि शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.