तृप्ति

मांगते कुछ हैं मिलता कुछ है |

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 22 Aug, 2025 | 1 min read

जल की दरकार थी

परोसे गए

केसरिया दूध, शर्बत, काढ़ा चाय

कॉफी, रूह अफजा की कतार में

खोज रहीदृष्टि,

जल- जल - जल......

परोसने वाला

अपनी आन - बान में

थोड़ा "मैं" के अभिमान में

पाने वाला ऊपर से कृतज्ञ

अन्दर से आकुल

इतना कुछ सामने होने पर भी

अपूर्ण सा व्याकुल

"तृप्ति का भी कोई विकल्प होता है क्या भला?!

" पानी में मीन पियासी,

मोहि सुन सुन आवत हाँसी।।

"संत कबीरदास" जी की पंक्ति पढ़

इन मछलियों का उपहास करने वालों को

आज इन मछलियों की वेदना का तीव्र एहसास है |

सुरभि

#baskuchyunhe

#timepass

#wordslove

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