*लांबा लांबा घूंघट काहे को डाला *(हास्य व्यंग्य)
नमस्ते, अरे रुकिए! शीर्षक पढ़ कर ई मत समझिए कि ये कोई घूँघट प्रथा के विरुद्ध ब्लॉग है इस टॉपिक पे पहले ही बहुत जागरुकता फैल चुकी है ।
आज" दुलारी "आपको सुना रही है अपनी इक नयी कहानी| ऊ हुआ का कि घर में हमरे लाडले देवर की शादी थी, हम भी बहुत खुश थे। खुशी खुशी सारी रस्में रिवाज निपटा रहे थे, अब उसमें एक रसम था चक्की में अनाज पिसाई का त बस चल पड़े सब चक्की की ओर, भगवान जी का गीत गाना शुरू हुआ । मौज मस्ती हँसी ठहाके का दौर और " गारी गवाई" (गाली गाने की रसम) ।
अब हम वहाँ की बहू ठहरे तो रिश्ते में सब ननद, जेठानी, देवरानी लेने लगे हमसे मजा । हमें गारी दे देकर गीत गाकर।
हम भी मजा ले रहे थे कि चलो रसम है पर समझ कुछ न पा रहे थे कि ई लोग जो हमें गरिया (गाली दे) रही हैं उसका मतलब का है, काहे की हम इ सब शब्द अपनी जिन्दगी में कभी सुने ही न थे, हमरे लिए गाली बस दुष्ट, पागल, शब्द तक ही सीमित थे
अब जोश में एगो गलती कर दिए कि बगल में जो बैठा था उससे गीत का मतलब पूछ दिए । अब मतलब पूछने के बाद तो हमरा माथा ठनकना शुरू हो गया , काहे की इ सब शब्द बोलना त दूर हम लिख भी नही सकत इहाँ , फिर भी चुप थे। अब गीत हमसे होकर हमरे जीजी, जीजा, भाई भोजाई , और मम्मी पापा पे पहुँचना शुरू हुआ और इधर हमरा पारा (सिर) गरम होना ।
दिमाग के घोड़े दौड़ा रहे थे कि कईसे रोकें ई सब, सीधा बोल नाही सकत थे कि बड़े बुजुर्ग पढ़ी लिखी घमण्डी बहू का तमगा तुरंत हमरे गले में टाँग देते। दो मिनट सोचे और फिर तुरंत अपना मोबाइलवा बजाए, अपना आँचल घूँघट की तरह गिराए और साड़ी घुटनों तक उठा कर मटकना शुरू कर दिए "लाम्बा लाम्बा घूँघट काहे को डाला, जाने क्या......अब हम मजे से हाथ उठा के गोल गोल घूम के नाच रहे थे और बाकी सब सकते में थे ।
दो मिनट बाद किसी की आवाज सुनायी पड़ी" ए दुलारी पगला गयी हो का!! बहु हो थोड़ी भी शर्म हया है कि नाही तुमको " ।
बस हम भी अपनी जुबान चलानी शुरू किए कि, इसमें शर्म काहे की हम तो खुशी में सिर्फ गाना बजा के नाच रहे हैं आप लोग तो खुशी में अपने पूरे सामधियाने को दूसरे शब्दों में मेरे पूरे खानदान को यहाँ तक कि मेरे माता पिता को गाली दे देकर खुश हो रहे हैं । ई रसम के नाम पे बहू के माँ बाप की बेइज्जती की कौन जरूरत है और अगर जरूरी है तो सीमा में रह कर निभाइए । दूसरी तरफ सब कौनो के साथ सबके बाल बच्चा हैं सुन रहे हैं पर 7-8 साल के बच्चे ई सब शब्द का मतलब का जानत हैं।
आज आप लोग अपनी मस्ती में गा रहे हैं, कल अपनी मस्ती में इहे सब फूहड़ गीतवा किसी के सामने ये उछल उछल कर गाने लगेंगे तब कैसन लगेगा आप लोगन को। बच्चों को जो दिखाईयेगा और जो सिखाइयेगा , वो ही सीखेंगे न।
अब सबकी बोलती बंद और आँखे नीची थी, और दुलारी चल दी अपने घर। गाँव में खूब गहमागहमी रही कुछ दिन इस टॉपिक पर क्योंकि सही बात के लिए भी मुँह खोलना बहु के बड़े तेज होने का टैग लगवा देता है। कुछ लोगन की नज़र मे सही कुछ की नज़र मे गलत, पर ई सबसे हमें कोई फर्क नाही पड़त है, बस खुशी ई है कि हमें और हमरे मायके को बेवजह कोई एक शब्द भी उल्टा सीधा नाही बोल सकत है, मजाक में भी नाही और किसी भी शादी में जब गारी गीत की रस्म आवत है त सब अपनी सीमा में रह कर शब्द का चुनाव करत हैं | हाँ जेठानी देवरानी के बच्चे जब भी हमें देखत हैं चाची चाची "लाम्बा लाम्बा घूँघट काहे को डाला" कह हमरी नकल जरूर उतारतें हैं और हम उन्हें प्यार से समझा देत हैं कि किसी की गलत बात नहीं सीखते|
थोड़े हँसी मजाक, मेल जोल बढ़ाने के उद्देश्य से बनाए गए कुछ खूबसूरत और मज़ेदार रिवाज़ किसी को बेइज्जत करने वाली कुरीति में मत बदलिए। रसम सब निभाईये पर सीमा में रहकर |
अब चलें फिर मिलेंगे |
धन्यवाद !
सुरभि शर्मा
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