होठों पे बस तेरा नाम है
तुझे चाहना मेरा काम है
तेरे प्यार में पागल हूँ मैं
सुबह - शाम.....।
आज बहुत दिनों बाद ये गाना सुनते ही मुझे बहुत तेज हँसी आ गयी अब कोई अकेले में यूँ हँसने लगे तो लोग क्या समझेंगे पागल ही न!
'पतिदेव घूरने लगे कि क्या हो गया दिमाग सही जगह है? मैंने हँसते हुए जबाव दिया ये गाना सुन रहे हैं?"
" हाँ तो," वहाँ से ज़वाब आया
मैंने भी कहा, तो यही कि ये गाना कभी मेरे ऊपर बिल्कुल फिट बैठा करता था।"
"अच्छा कभी बताया नहीं तुमने मुझे!" थोड़ा बुझे स्वर में वहाँ से ज़वाब आया।
" मैंने भी कहा आज बता देती हूँ, ये बताओ मुझसे सुनोगे या डायरी में सहेज कर लिखा गया अपना लव - लेटर पढ़ा दूँ? जो मैंने अपने पहले प्यार के नाम लिखा था।आखिर 5 साल की थी तब से मुझे उससे प्यार है।"
"अच्छा! आज भी तुम उससे....? "
"सही बोलूँ हाँ, आज भी मैं उससे और खुद से ज्यादा! "
"फिर तुमने.....?" प्रश्न अधूरा छोड़ दिया गया।
"मैंने कहा क्या करती बहुत डांट - पिटाई खायी उसके पीछे बहुत लम्बी बातेँ हैं तुम यूँ नहीं समझोगे।मैं तुम्हें अपनी डायरी देती हूँ तब तुम मेरे लगाव को उसके प्रति जान पाओगे और एक राज की बात बताऊँ तुम उसे जानते हो।"
हक्का - बक्का हुए पतिदेव को मैंने अपनी डायरी खोल कर पकड़ा दी।और उन्होंने पढ़ना शुरू किया।
मेरे पहले प्यार
आगे कुछ लिखने के पहले एक बार तुम्हें अपने होठों से लगाना चाहती हूँ।
ध्यान से सुनो! बहुत जल्द मैं इस घर से विदा होने वाली हूँ डरी हुई हूँ कि कोई तुम्हें मुझसे अलग न कर दे पर सच ये है कि मैं तुम्हारे बिन नहीं रह पाऊँगी आखिर मेरी 5 वर्ष की उम्र से हम तुम जुड़े हुए हैं।
याद है तुम्हें वो दिन जब तुमसे मेरा परिचय हुआ था और मैंने तुम्हें देखते ही अपने होंठो से लगा लिया था। ये अलग बात है कि हम पर मम्मी की नजर पड़ते ही मेरी गजब की धुनाई हुई थी, पर उसके बाद भी जाने तुमसे कैसा मोह का बंधन जुड़ा था कि जब भी मौका मिलता उस छोटी उम्र में भी मैं तुम्हें अपने होंठों से लगाए बिना और तुम्हारी महक कैसी है इसका अहसास किए बिना रह नहीं पाती थी। वैसे तो मैं तुमसे तभी मिल पाती जब घर में सब सोये रहते और अगर कभी तुमसे नहीं मिल पाती तो उस पल की बैचैनी को सिर्फ मैं ही जानती हूँ।
बचपन से निकल कर कदम पहुंचे सोलहवें साल की तरफ और तुमसे अटूट बंधन बंध चूका था, अब मम्मी को तुम्हारे प्रति मेरी दीवानगी समझ आने लगी थी इसलिए तुम्हें मेरे साथ देख अब कुछ बोलती नहीं थी, बस हल्का सा मुस्करा देती और जानते हो जब भी तुम्हें होंटों से लगा कर खुद को आईने में निहारती तो जाने क्यों खुद पर गुरूर हो आता।
पर हाँ घर के पुरुषों के सामने मुझे अब भी डर लगता था तुम्हारे साथ जाने में इसलिए उनकी नजरों से बचा के ही पास आती तुम्हारी। फिर आया नौकरी का दौर उस समय लगा कि चलो घर से बाहर निकल अब मैं कुछ समय तुम्हारे साथ बिता सकूंगी, पर वहां भी अनुशासन बड़ा तगड़ा था और सबकी नजर पैनी और फिर क्या एक दिन तुम आ गए सबकी नजरों में और लग गया प्रतिबंध हमारे मिलने पर , और अब शादी हो रही है जानते हो , बहुत खौफ था मुझे कि कहीं उन्होंने तुम्हें मुझसे पूरी तरह ही अलग कर दिया तो,! क्या करुँगी मैं? तो एक दिन फोन पर बड़ी हिम्मत कर के इनको तुम्हारे प्रति मेरे प्यार की कहानी सुनायी और पूछा तुम दूसरे पुरुषों की तरह मुझे "मेरे पहले प्यार " से अलग तो नहीं करोगे न!
इन्होंने पूछा तुम्हारे लिए, मैंने सब सच - सच बता दिया।
जानते हो मेरे पहले प्यार पहले ये खूब हँसे फिर कहा तुम्हारे लिए कुछ भिजवाया है सोचा था सरप्राइज़ दूँगा पर रुको अब फोटो भेज ही देता हूँ।
और जानते हो टिंग की धुन के साथ वो फोटो जैसे ही स्क्रीन पर क्लिक हुआ न मेरी तो खुशी और लाज के मारे आँखे ही बंद हो गयी क्योंकि ये तो खुद ही तुमसे मुझे मिला रहे थे।और अब मेरे पास तुम्हारे प्यार का सिर्फ लाल रंग नहीं था ब्लकि, गुलाबी, बैंगनी, चॉकलेट समेत 10 प्यार के रंगो से सरोबार था। मुझे तो लगा जैसे मेरी पूरी दुनिया मिल गई क्योंकि मेरे प्यार का रँग अब हर रँग में खिलने वाला था जो मुझ पर।
क्योंकि अब मुझे मेकअप के सामान में मेरे पहले प्यार "लिपस्टिक "को लगाने की खुली आजादी जो मिल गई है।
डायरी बंद हो गयी, और घर में कहकहों की गूँज थी अब।
अब पहला प्यार तो पहला प्यार ही होता है चाहे इंसान से हो या सामान से |
उम्मीद है आप सबको मेरे इस पहले चटपटे प्यार की कहानी पसन्द आयी होगी |
सुरभि शर्मा
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