"कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
वा पाए बौराए जग या खाए बौराए |"
विद्यार्थी जीवन में अलंकारों की परिभाषा समझते हुए ये दोहा पढ़ा था जो आजकल सोशल मीडिया के उपयोग पर बिल्कुल चरितार्थ होता दिखायी दे रहा है |
ऐसे तो अब सोशल मीडिया के उपयोग बिना एक पल की भी कल्पना थोड़ी मुश्किल सी है, पर कहते हैं न लत बहुत बुरी शय होती है |
विज्ञान जहां विकास को जन्म देता है वहीं दूसरी और अप्रत्यक्ष रूप से विनाश का भी कारक है |
इस डिजिटल युग ने मानव के भौतिक जीवन को जितना सहज सरल बनाया उतना ही उसे जटिल भी किया |
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है पर सोशल मीडिया की उपलब्धता ने मनुष्यों की मनुष्यों पर निर्भरता बहुत हद तक कम कर दी है जिससे लोगों की एकाकी जीवन जीने में रुचि बढ़ती जा रही है |
सोशल मीडिया द्वारा भ्रामक प्रचार - प्रसार से भी बहुत तरह की गलत जानकारियां लोगों को कभी कभी दिशाहीन कर रही हैं |
लोग का रुझान गुणात्मक कलाओं में अब कम होता जा रहा है बस अब कैसे भी मोबाइल कैमरा, वीडियो और कुछ apps के प्रयोग कर क्षण भर में मशहूर हो जाने की इच्छा बलवती होती जा रही है |
सारी सुविधाएं ऑनलाइन उपलब्ध हो जाने के कारण मानवजनित सम्वेदना का विघटन हो रहा है |
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है |
इसका सबसे बड़ा माइनस पॉइंट बच्चों के शारीरिक विकास को अवरुद्ध करना है, बच्चे अब विष - अमृत, पकडम पकड़ाई जैसे खेलों के नाम नहीं जानते गांव में भी बच्चों को पेड़ के झूले में कोई अभिरुचि नहीं सब बबल शूटर और
केन्डी क्रश सागा जैसे डिजिटल खेलों में व्यस्त हो चुके हैं. लूडो, केरम भी ऑनलाइन उपलब्ध हो चुके हैं |
युवा वर्ग पोर्न साइट, सट्टेबाजी और साइबर क्राइम के लपेट में आसानी से आ जा रहे हैं |
पर वहीं सोशल मीडिया के बहुत सारे फायदे भी हैं |
स्त्री वर्ग को सोशल - मीडिया का बहुत बड़ा लाभ मिला है, यहां तक की ग्रामीण क्षेत्र की स्त्रियां भी सोशल मीडिया का उपयोग कर खुद की आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ साथ अपनी पहचान भी बना रही हैं|
नयी - नयी जानकारी मिलती हैं देश - विदेश की खबरें क्षण भर में हमारी पहुंच में हो जाती हैं |
ऑनलाइन सामाजिक रिश्तों का दायरा बढ़ रहा है |
अपनी कला अपनी योग्यता को लोग इस माध्यम से वृहद तौर पर हस्तांतरित कर पा रहे हैं |
व्यवसाय को प्रोत्साहन मिल रहा है |साथ ही ऑनलाइन रोजगार भी उपलब्ध हो रहे हैं |
आज ये डिजिटल सुविधायें की ही विशेषता थी कि covid के दौरान घर में बंद रहते हुए भी लोगों की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति हो जा रही थी, लोग पल पल चौकन्ने थे |
निष्कर्ष यही है कि कोई भी आविष्कार बुरे नहीं होते वो हमारे जीवन को सरल बनाने के लिए होते हैं पर हम उनका उपयोग किस तरह करते हैं ये उसकी गुणवत्ता को प्रभावित कर देते हैं |तो बस सोशल मीडिया का लाभकारी तरीके से उपयोग करें न कि उसे अपनी बुरी लत बना लें |
वो कबीरदास जी ने कहा है न कि -
"अति की भली न बोलना, अति की भली न चुप
अति की भली न बरसना, अति की भली न धूप "
सुरभि शर्मा
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