रचनात्मकता आपबीती की मोहताज नहीं

आपबीती से पहले जगबीती लिखता है |

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 21 Oct, 2021 | 1 min read

गुंटूर - गूँ - गुंटूर - गूँ उफ्फ इन कबूतरों ने तो जीना मुश्किल कर के रख दिया है पैर पटकते हुए शिवानी वापस किचन की तरफ चल पड़ी |


"पूरे अपार्टमेन्ट में एक मेरा ही घर मिलता है इन मुँहजलो को गन्दगी फैलाने के लिए खिड़की पर जाली तक लगवा दी पर मुए को चैन नहीं है चोंच से मार मार कर जाली के किनारे खोल डाले और तिनके फैलाने लगे हुँह" बुदबुदाते हुए उसने तीसरी बार कबूतरों के फैलाए हुए तिनकों को हटाया और अपने कमरे में आकर फेसबुक पर अपनी लिखी हुई एक थोड़ी रोमानी कविता पोस्ट करने लगी |


     " साँझ ढ़लने लगी है 

    ख्वाहिशें मचलने लगी हैं 

    ख्वाबों से बोझिल होती ये आँखे 

    चहकती रातें, महकती बातें 

     प्यार की इस मीठी उलझन में 

     धड़कनें बहकने - संभलने लगी हैं "


कविता पोस्ट होते ही कुछ ऐसे कमेन्ट आने शुरू हुए 


  1-उफ्फ क्या अंदाज है! 


  2-लगता है आज डेट पर जा रही हो? 


 3- ये दिल आशिकाना |


शिवानी मन ही मन चिड़चिड़ाते हुए कि 'जयशंकर प्रसाद' ने" "कामायनी" लिखी तो वो स्वयमभू मनु, इडा,और श्रद्धा हो गए क्या! उफ्फ लोगों को समझ क्यों नहीं आता कि लेखक का सबसे पहला गुण हर परिस्थिति पर अपनी एक कल्पनाशीलता भी होती है, जाने क्यूँ लोग तुरन्त हर शब्द निजी जीवन पर मोड़ देते हैं |खैर जाने दो ये तो सुधरेंगे नहीं और मुझे भी कभी - कभी अपनी बातें लिखकर फेसबुक पर पोस्ट करना अच्छा लगता है तो मैं भी बिना लिखे रहूँगी नहीं ये सोचकर सारे कमेन्ट पर लाफिंग इमोजी दे ही रही थी कि फिर से गुंटूर - गूँ की आवाज कानों में सुनायी दी |


इस बार शिवानी ने पूरे गुस्से में किचन में प्रवेश किया कि कबूतरों की तो अब मैं बैंड बजा दूँगी, पर खिड़की के पास पहुँचते ही जब उसने कबूतरी को बिना घोंसले के ही फर्श पर अंडे देते हुए देखा तो उसका गुस्सा काफूर हो गया और मन आत्मग्लानि से भर उठा |उफ्फ ये क्या अपराध हो गया मुझसे! आखिर ये परिंदे भी कहाँ जिएंगे अपना जीवन, इनके रिहायशी इलाक़ों पर ही तो हमारी आलीशान इमारतें खड़ी हैं |कमरे में आकर उसने रूई के गोले लिए और चुपचाप कबूतरी के पास रख दिए दाना - पानी का इंतजाम भी कर दिया और वापस अपने कमरे में आकर डायरी में लिखने लगी लिखते - लिखते अचानक उसने मोबाइल उठाया 

और फेसबुक पर एक छोटा सा कोट पोस्ट कर दिया

"ख्वाहिश तो सब रखते हैं आसमान में उड़ने की पर  परिंदो का अपना आशियाना न होने का दर्द किसे नजर आया! "



और दो मिनट भी न बीते थे कि 


1-उफ्फ कितना भावनात्मक! 

2-सब ठीक है न? 

3-कुछ हुआ है क्या? 


शिवानी का मूड पूरी तरह से खराब था इसलिए वो मोबाइल साइलेंट कर के सो गयी | 


सोकर उठने के बाद किचन में जब गयी तो देखा खिड़की पर तीन नन्ही जान दुनिया में आने को उत्सुक थे अचानक से शिवानी को लगाव सा होने लगा और वो भी हर दिन दाना - पानी डालते हुए उनके इस दुनिया में आँखे खोलने का इंतज़ार करने लगी कबूतरी का साथी आता और उसकी सुरक्षा की तसल्ली कर के चला जाता |


और कुछ दिनों बाद उसकी खिड़की पर तीन चूजे खुशी से चहचहा रहे थे गन्दगी तो थोड़ी हो रही थी पर उससे ज्यादा उसे चूजों की चहचहाहट भली लग रही थी, वो दूर से ही हर दिन उन्हें प्यार भरी नजरों से देखती और दाना - पानी डाल देती |दिन बीत रहे थे और चूजे बड़े हो रहे थे |


और फिर एक दिन दोपहर के समय अचानक से चूजों ने शोर मचाना शुरू किया पहले तो शिवानी ने ध्यान नहीं दिया पर जब शोर बढ़ता गया तब शिवानी किचन की तरफ भागी |

सामने ह्रदय - विदारक दृश्य था जाली के किनारे से घुसने की कोशिश करते हुए कबूतर का गला किसी तरह जाली के कील में फँस गया था और वो दर्द से तड़प रहा था शिवानी उसे किसी तरह बचाने का उपाय सोच ही रही थी कि उसने दम तोड़ दिया |कबूतर के पूरे परिवार के साथ शिवानी भी बहुत दुखी हो गयी 15 दिनों के अंदर उसने जीवन से मरण तक का शाश्वत सच देख लिया था |


मन दुखी था ना चाहते हुए भी टाइपिंग करते हुए उससे फेसबुक पर पोस्ट हो गया - 


"हौंसला तो बहुत है ए जिन्दगी तुझसे लड़ने का पर ना

जाने क्यों अक्सर सब्र का पैमाना छलक सा जाता है |"


"जिंदगी बिल्कुल गुलाब सी है देखने में खूबसूरत 

पर छूने चलो तो पहले काँटे चुभते हैं" |


कमेन्ट आने शुरू हो चुके थे पर शिवानी की इच्छा नहीं हुई पढ़ने की |

 

किसी तरह मन को समझा कर वो चाय बनाने लगी |


तभी मोबाइल घनघना उठा स्क्रीन पर उसकी एक सहेली का नंबर फ्लैश हो रहा था, अभी उसने रिसीव कर हैलो बोला ही था कि वहाँ से तीर सा प्रश्न चुभा, सुन तेरे साथ सब कुछ ठीक है न? तेरा तेरे पति से कहीं झगड़ा तो नहीं हुआ अभी कुछ दिनों पहले तूने एफ बी पे कितनी रोमांटिक कविता पोस्ट की थी फिर इधर 2-3 दिनों से इतनी उदासी भरी बातें क्यों लिख रही है |


अब शिवानी के सब्र का प्याला छलक उठा था उसने चिल्लाते हुए पूछा कि तू मेरे साथ पढ़ी हुई है न "मैथिली शरण गुप्त" की "कैकयी संताप" का वाचन अक्सर तू ही कक्षा में किया करती थी तो तूने कभी मैथिली जी से जाकर पूछा क्या कि पिछले जन्म में आप ही कैकयी थे क्या? 


"हद है यार! तुझे पता है न मैं कितनी संवेदनशील हूँ दूसरों के दुःख सुख को खुद से जोड़ लेने वाली हर परिस्थिति पर अपनी एक कल्पना कर उसे अपने शब्दों द्वारा मूर्त रूप देने वाली और तू ही अक्सर मुझसे कहा करती थी न कि तू एक दिन बहुत बड़ी लेखिका बनेगी क्योंकि तेरे अंदर छल - कपट बिल्कुल नहीं और एक अच्छे लेखक को पहले एक अच्छा इंसान होना जरूरी होता है जो हर किसी के नजरिए को सही तरीके से समझ सके बोल! 

सामने से जवाब आया हाँ यार माफ कर दे मुझे भूल गयी थी कि लेखक तो समाज का प्रतिनिधित्व करता है तो वो आपबीती से पहले जगबीती लिखता है |"


" कहानी सत्य घटना पर आधारित है |"


धन्यवाद 

सुरभि शर्मा 







     




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Surabhi sharma

surabhisharma

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत खूब

  • Surabhi sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    शुक्रिया

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