मासी माँ भाग - 2

क्या है आभास और मासी माँ रिश्ता

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 12 Dec, 2022 | 1 min read

मासी माँ का चहेता आभास उसे ढूँढना भी कोई आसान काम न था |भूसे में से सुई खोजना कह लें या चायपत्ती में राई छांटना 17 वर्ष की उम्र को छूता हुआ शरीर मन हरदम अधीर, बातें लटटू की तरह गोल - गोल घूमती हुई और आँखे आकाशी सपनों को चूमती हुई मासी माँ का लाडला पोता, जो कि कहने को उनकी बहन का पोता था पर कुछ कारणों से इसके लालन - पालन का भार मासी माँ उठाए हुए थी |सिर्फ एक इसमें ही उनकी आँखों में आँख मिलाकर बात करने की हिम्मत थी, तो घर के नौकरों को हर दिशा में दौड़ाया गया कोई चित्तनाथ दौड़ा तो कोई रोजा किसी की साइकिल लाल - दरवाजे को पार करते मिश्र बाजार तक चली तो कोई रिक्शा पे महुआ बाग दौड़ा | पर इस घर में रसोई बनाने वाली मालती ने धीरे से कहा कि "आभास बाबू जरूर कलक्टरघाट पर होइयें मछली पकड़े के जुगाड़ में ओनने देखबायीं लोगन |

मालती का आभास से एक बेटे सा स्नेह था और आभास भी शायद माँ की ममता की कमी मालती के आँचल तले पूरी करता था |इसलिए मालती को उसकी छोटी सी छोटी बात पता रहती | मासी माँ का बेटा अभय जो कि स्वयम अभी छः सात महीने पहले नया नया पिता बना था |ये सुनकर स्वयं कलक्टर घाट की तरफ बढ़ चला |


तपतपाता दिन धरा पर अपनी भरपूर उमंगों को लूटा चूका था और अब आराम करने के उद्देश्य से उसने अपनी सहज सुनहरी लालवर्णी किरणों को समेटना शुरू कर दिया था |

और अब श्यामवर्णी आभा धरती के शृंगार के लिए जगमगाते दियों और दीपदीपाते तारों के आभूषण के प्रबंध में व्यस्त थी |इस प्रहर में अभय ने आभास को एक नौका पे मौज से लेटे हुए मोबाइल टिपटिपाते हुए पाया अगर कोई और समय होता तो अभय उसे ताना मारे बिना नहीं रहता क्यूँकी अभय को आभास से कोई खास लगाव नहीं और अक्सर वह उसे "काम का न काज का दुश्मन अनाज का" कह कर ताना मार ही दिया करता है |पर आज समय की गेंद आभास के पाले में थी इसलिए उसने विनम्रता से निवेदन किया कि आभास घर चल मासी माँ की तबियत कुछ ठीक नहीं है |अभय की इतनी मीठी आवाज सुनकर कुछ क्षण के लिए तो आभास चकरा गया कि ये सूरज वापस पूर्व में ही अस्त हो रहे हैं क्या आज! अगर कोई और बात होती तो अभय के कहने पर आभास इस सुखद क्षितिजा मिलन के प्रहर में अपने इस नौका विश्राम वाले सुख को किसी भी मूल्य पर न त्यागता पर यहाँ बात उसकी प्यारी मासी माँ की थी इसलिए वो बिना किसी हील - हुज्जत के अभय के साथ चल पड़ा |


क्रमशः 

सुरभि शर्मा "जिंदगी" 

     

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