वो मन ही मन बड़बड़ाते हुए उठा 'ये लोग दो पल भी किसी को चैन से रहने नहीं दे सकते |' दरवाज़ा खोला तो सामने अभय खड़ा था अपने छः महीने के बेटे को लेकर |
'आभास जरा काव्य को थोड़ा सम्हालना, मुझे कुछ काम से बाहर जाना है थोड़ी देर के लिए, और तेरी मामी पड़ोस में गयी हैं कुछ काम से |'
आभास ने हाथ आगे बढ़ा काव्य को अपनी गोदी में ले लिया |काव्य खिलखिला पड़ा उसे आभास की गोद बड़ी रास आती |अपनी तोतली जुबान में आभास को देख खुशी से अ ब, अ ब बोल किलकारी मारने लगता |
ये रात भी बीतने लगी सक्सेना निवास अब मासी माँ के बिना रहने वाले सन्नाटे का धीरे -धीरे आदि हो रहा था |
अगले दिन सुबह 11 बजे वकील साहब घर पधारे | सबके दिल में धुकधुकी सी थी खास तौर से अभय की नजरें बार - बार आभास की तरफ उठ जाती और आभास जाने क्यों ग्लानि से भर जाता |
"वकील साहब ने जो वसीयत पढ़ी उसका वर्णन अभी सही नहीं होगा उसकी परते कहानी जैसे - जैसे आगे बढ़ेगी वैसे खुदबखुद खुलेगी" | बस आभास और अभय दोनों संतुष्ट थे मासी माँ की वसीयत से और मालती काकी भी और मासी माँ की बहू तो इश्वर के आगे दिया जला बार - बार यही दोहरा रही थी आज अम्मा जी होती तो मैं उन्हें पांव धो- धो पीती |पहली बार शायद किसी सास ने अपनी बहु के साथ बराबर का न्याय किया हो |धन्य हैं अम्माजी!
जो वसीयत सुन रहा था वही उनकी दूरदृष्टि सुन दांतों तले उंगली दबा ले रहा था |तो कुछ यूँ मजलिस जमी हुई थी सक्सेना निवास में |
पर आभास का मन तो उस नीली मखमली डायरी में अटका हुआ था |वो सबकी नजर बचा फिर ऊपर कमरे में आ डायरी लेकर बैठ गया -
10- घर में बबलू भैया की शादी तय हो गयी है छह महीने में भाभी घर आ जाएगी मेरी |बाबु जी बता रहे थे कि पूनम नाम है और पूर्णिमा के चाँद की तरह ही दूधिया रँग है, खेती - बाड़ी, गाय - गोरू सबकी देखभाल खुद भी कर लेती है |बारहवीं तक पढ़ी है |
मेरा मन सोच रहा है इतनी नाजुक सी लड़की इतने बड़े - बड़े काम कैसे सम्भाल लेती होगी? फिर ध्यान आया कि भाभी बारहवीं तक पढ़ी हैं |मुझे खुद का ख्याल आया मैं भी तो दसवीं में पहुँच गयी हूँ क्या 2-3 साल में मैं भी ऐसे ही इस घर से चली जाऊँगी? '
आभास इन बातों को पढ़ मन ही मन मुस्करा उठा कि सच में वो भी क्या जमाना था बड़ों की तानाशाही कही जाए या कठोर अनुशासन की जिन्हें सारी जिंदगी एक साथ बीतानी है सिर्फ उन्हें छोड़ पूरा खानदान दूल्हे - दुल्हन से रूबरू रहता |जाने कैसे रिश्ते निभ जाते थे यूँ उस समय, और इस सोच के साथ उसे मासी माँ की कहानी याद आ गयी और नम आँखों को पोंछ वो फिर से डायरी ले बैठ गया |
क्रमशः
सुरभि शर्मा
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