अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदी न्नुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते||
"महिषासुर मर्दिनी स्रोत" का शोर जब लाउडस्पीकर की तीव्रता को भी पार करने लगा तब घर के सब सदस्य मासी माँ की कमरे की तरफ भागे जो की दूसरी मंजिल पर स्थित था |उस मंजिल पर पहुँचते ही लोगों ने वर्षो बाद उन घुँघरूओं की आवाज सुनी जिसकी थिरकती छम- छम के सिर्फ परिवार के सदस्य ही नहीं बल्कि कभी पूरी लहूरी काशी कायल थी, पर गोल चमकीले घुँघरू के घर्षण से उत्पन्न इस मधुर स्वर - लहरियों ने तो सन 1987 से मौन धारण किया था फिर अचानक इस संगीत का यूँ गुंजायमान होना वो भी इस परिस्थिति में सबके लिए किसी अचरज से कम न था |
मासी माँ के दरवाज़ा का कमरा आधा खुला हुआ था जिससे कमरे तक पहुंचते ही अंदर का नजारा देखकर सब स्तब्ध रह गए |
उनके कमरे की बारजे से सटी हुई दीवार में सागवान लकड़ी के फ्रेम में जड़ा हुआ बड़ा हुआ सा दर्पण जिसमें मासी माँ का आज फिर वही महारानी वाला प्रतिबिंब झलक रहा था |
सुर्ख लाल सुनहरे बॉर्डर वाली साड़ी, कलाइयों में खनकती चूडियां, लाल - सफेद रंग में मिश्रित माथे की त्रिकूटी पर सुसज्जित बड़ी सी बिंदी नाक में दीप्तिमान होती हीरे की नथ और मांग में दमकता हुआ सिंदूर, उफ्फ! ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे स्वयं माँ दुर्गा ही अवतरित हो गयी हों मासी माँ के रूप में पर उनका ये अप्रतिम रूप - सौंदर्य सन 87 की जुलाई के बाद फिर अभी तक किसी को दृश्यमान ही नहीं हुआ था बार - बार नानी के मनुहार करने के बाद भी की सुहागन है तो जरा शृंगार कर के रहा कर पर ये वाक्य सुनते ही उनकी हमेशा पनीली रहने वाली आँखे अग्नि का प्रचंड वेग धर यूँ प्रज्वलित हो उठती कि दुबारा किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ती |धीरे - धीरे सब उनके रहन - सहन को लेकर मौन धारण करते गए |फिर आज अचानक पच्चीस साल बाद अकस्मात खादी की साड़ी और लम्बी गुंथी चोटी के आवरण का यूँ निष्कासन और उस रूप का फिर से जीवनदान जिस रूप कि अब उन्हें सांसारिक रीति - रिवाजों के कारण सामाजिक रूप से कोई आवश्यकता ही नहीं रही|क्या मासी माँ अपना मानसिक संतुलन खो रही हैं? सबके बीच यही परिचर्चा चल रही थी पर मासी माँ से कुछ पूछने की या उन्हें रोकने की हिम्मत किसी में नहीं सिर्फ एक के सिवा उनका प्रिय पोता आभाष |
पर वो अभी यहाँ है कहाँ उसे जल्दी से ढूँढने कुछ लोग निकल पड़े |
क्रमश :
सुरभि शर्मा
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