ये कौन सी जिद है रमा तुम्हारी? इतनी ऊँची ऊँची डिग्रियां रहते हुए तुम किसी आला दर्जे की नौकरी की जगह प्ले स्कूल और गरीब बच्चों को पढ़ाने की हठ किए बैठी हो, जबकि तुम्हें डिग्री कॉलेज में आराम से लेक्चरर की नौकरी मिल सकती है |
तुम नहीं समझोगे उमेश मैं अपनी क्षमता द्वारा सिर्फ पैसे नहीं कमाना चाहती बल्कि अपनी जिन्दगी में कुछ सार्थक करम करना चाहती है हूँ |कॉलेज के बच्चों को ऑलरेडी एक पक्का स्वरूप मिल चुका होता है फिर उन्हें ज्यादा ठोकने बजाने में उनके टूटने का डर बना रहता है |
पर अबोध बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, जिन्हें हम आराम से संस्कारों की नींव में गूंधकर, कर्तव्य और अधिकार के चाक पर चलाकर, उन्हें अच्छे - बुरी सम - विषम परिस्थितियों में तपाकर कुम्हार के बनाए घड़े की तरह शीतलता देने वाले और अंधेरे में प्रकाश फैलाने वाले दियों के समान बना देश, समाज और परिवार के उज्जवल भविष्य के प्रति अपना एक छोटा सा योगदान दे सकते हैं |
क्या इससे बढ़कर कोई सार्थक सृजन है?!
धन्यवाद
सुरभि शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
लघुकथा पढ़कर दिल प्रसन्न हो गया। ।उम्दा संदेशप्रद लघुकथा
शुक्रिया संदीप
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