सुना है प्रेम बँधना नहीं चाहता
वह बहना चाहता है निर्बाध, अविराम |
स्त्रोत कहाँ है प्रेम का?
सुना है स्त्री - हृदय!
अवलम्ब कहाँ है प्रेम का?
सुना है पुरुष - साहचर्य!
साहचर्य में उत्पन्न हुआ दम्भ
जन्म हुआ अवरोधों का, प्रेम के स्त्रोत में
अवलम्ब होता गया दम्भ में निर्भय, स्वतंत्र|
"और कभी दूध का ऋण चुकाने के लिए
तो कभी दूध का कर्तव्य निभाने के लिए
परतंत्र होता गया प्रेम का स्रोत |
कभी अवलम्ब की अनिवार्यता की अदृश्य दीवारों में
तो कभी कैद होता गया
अपने कर्तव्यों के पारदर्शी जारों में |"
सुरभि शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
आपकी कृति अनमोल होती है
शुक्रिया संदीप
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