हाँ, मैं इक सवाल हूँ, तो क्या फिर तुम मेरा जवाब बनोगे
मैं लिखूँगी फलसफे जिंदगी के, क्या तुम मेरी किताब बनोगे |
आँखों में जो सजा के रखूँ तुम्हें काजल की तरह
तो क्या फिर तुम मेरे हर अश्क का हिसाब बनोगे |
बुझने लगे जब सारी हसरतें परेशानियों के अंधेरे तले
तो क्या फिर तुम मेरी उम्मीदों का चमकता आफताब बनोगे |
जब रिस रहे हो जख्म कुछ यादों के कड़कती धूप में
तो क्या फिर तुम बारिश से छनकता मेरा रूबाब बनोगे |
जब हर लम्हे हो रहा हो इम्तिहान सब्र का मेरे
तो क्या फिर तुम मेरे लिए दुआओं का माहताब बनोगे |
जो दहक जाऊँ कभी अंगारों की तरह हो गम ज़दा
तो कहो क्या फिर तुम मेरा इन्कलाब बनोगे |
गुमशुदा जो हो जाऊँ कभी हो हकीकत से रूबरू
तो क्या तुम दिल में छुपा मेरा हर मुक्कमल ख्वाब बनोगे |
"जिंदगी" जो न उतर पायी तू खरी रदीफ़, काफिया पैमानों पे
तो भी क्या तुम मेरी गुनगुनाती गजल लाजवाब बनोगे |
सुरभि शर्मा
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