गगन में जो ये उड़ते परिंदे हैं
ये भी धरती के ही बाशिंदे हैं|
है जो फक्र हमें इतना इंसान होने का
कि हम तो खुदा के अव्वल कारिंदे हैं |
खाक में फिर यूँ मिला रहे जो आशियाना इनका
क्या अपनी ख्वाहिशों के आगे हम इतने शर्मिंदे है|
'जिंदगी 'मर रही रूह इंसानियत की
जिस्म में अब क्या सिर्फ इंसान जिंदे हैं |
सुरभि शर्मा
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