उनींदी अधखुली आँखों के चूल्हे पर
बैचेनियों के लकड़ी से सुलगा
गुँथे हुए शब्दों की लोई पर
. वाक्यों का बेलन चला
भावनाओं के तवे पर सिंकती हैं
कुछ कच्ची - पक्की कहानियाँ
और परोस दी जाती हैं
सफेद सफहों पर,
खट्टे - मीठे अचार की तरह
काली स्याही के साथ
और फिर तय करते हैं इसका जायका
इसे चखने वाले अध्येता |
सुरभि शर्मा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.