हमारा देश भारत एक लोकतांत्रिक देश है, और लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तंभ है..
1. विधायिका
2. कार्यपालिका
3. न्यायपालिका
4.पत्रकारिता या मीडिया
उपरोक्त तीन स्तंभ कानून बनाने ,उसको जनता तक पहुंचाने, उसको समाज में पालित करने तथा पालन ना होने पर सजा का प्रवाधान कराते हैं ,
वहीं चौथा स्तम्भ मिडिया इन सबके कार्यो पर कडी नजर रखने के लिए बना था, कि देश, दुनिया ,समाज के परिप्रेक्ष्य में क्या किया जा रहा है?
व्यवस्थाएं कैसे चल रही हैं?
शासन प्रशासन के कार्यो का आम जनमानस पर क्या असर हैं ..?
किसी भी घटना और विषयों के प्रति जनता की प्रतिक्रिया क्या हैं..?
इन सब चीज़ों पर एक निष्पक्ष नजर रखकर, खबरों के रूप में लोगो तक पहुंचाना..।
पहले समाचारो के लिए लोग केवल प्रिंट मीडिया पर निर्भर थे, कोई भी खबर, झूठी या सच्ची बहुत तेजी से नही फैलती थी, लेकिन जब से इलैक्ट्रॉनिक्स मिडिया इस क्षेत्र में आया है, छोटी से छोटी खबर आग की तरह से देश दुनिया के कोने कोने तक फैल जाती है. .!
अब सोचिए, अगर वो खबर झूठी हो तो ..?
या किसी विशेष समूह को फायदा दिलाने के हिसाब से ही परोस दी गयी हो तो.. ?
ये समाज के साथ, आम जनमानस की भावनाओं के साथ कितना बडा खिलवाड होगा.. !
और यही हो रहा है, जिस चौथे स्तम्भ को इतना बडा अधिकार दे दिया गया कि वो अपने कैमरे से, लोकतंत्र के तीनो अन्य पालिकाओं के क्रिया कलाप पर नजर रखें और आम जनता व शासन प्रशासन के बीच सही मायने में माध्यम बनें ...उस मीडिया के कैमरो में अब फिल्टर लग गयें हैं, जी हां, फिल्टर...!
"फिल्टर व्यवसायिकता के, राजनैतिक हितो के, खुद का हित साधने के, और प्रतियोगिता के इस अंधे युग में टी आर पी नाम की बीमारी के...!"
एक चैनल जो कर रहा है, जो खबर जैसे ला रहा है, सब उसी को उसी समय सबसे तेज लाने का दावा कर रहे हैं, सडको पर भाग रहें हैं माइक लेकर, किसी की भी निजता में घुसे जा रहें है माइक लेकर और सामाजिक मुद्दो से कोई दरकार नही, बस.. मसाला मसाला मसाला... जैसे कि बात समाचार की ना होकर ,मनोरंजन की ही हो रही हो, केवल...!
कहां है निष्पक्षता..?
वो तो कब की मर चुकी और जो अब चल रहा है, वो है अतिवाद, एक और केवल एक ही चीज के पीछे या बात के पीछे हाथ धो कर पड जाना और उसी समय पर हो रही अन्य घटनाओं को गधे के सर से सींग की तरह साफ कर देना.. !
ऐसे कौन सा समाज चल सकता है साहब...!
जरा सोचिए... गिरना है. ..कोई बात नही गिरने की भी तो हदें होनी चाहिए. ..!
आखिर कहां तक... और कितना..?
अब बात करते हैं सोशल मीडिया की ,वहां मिडिया की ऊल जलूल सभी हरकतो के प्रति बहुत त्वरित प्रतिक्रिया आती है कि, सही गलत सोचने का किसी के पास समय नही हैं, बस फटाफट मैं पहले, मैं पहले की तर्ज पर वहां स्टेटस आना ही है, इस धैर्यहीनता के माहौल का कुछ जरूरत से ज्यादा सक्रिय, स्वार्थी तत्व , अपने बडे बडे हित साधने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और मासूम जन इन सब बातों को समझ नही पा रहा है. ..कुल मिलाकर बेहद नकारात्मक स्थिती बनी है मिडिया की सही भूमिका न होने की वजह से.. .।
अब उस पर नजर कौन रखे, जिसको सब पर नजर रखने को बनाया गया था....! समाज में बढती अराजकता और अस्थिरता को देखते हुए कुछ सख्त नियम कानून तो मीडिया के लिए भी हो.. ..आत्ममंथन की जरूरत हैं,सभी मीडिया एजेंसियों को. ..!!
©sonnu Lamba 🌟
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut sahi likha. Khabrein bhi aise parosi jati Hain ki kehna mushkil, ki Kya Sach...Kya galat. Patrakarita aaj apne mool uddeshya se bhatak chuki hai.
जी, सोनिया जी, एकदम सही बात 👍
Last paragraph me accha suggestion aapne ullekh kiya. Vi hi sahi hoga, media ko control karne ke liye.
बेहद संदेशपरक आलेख लिखा मैम आपने। आपकी हर रचना संदेशपरक व सार्थक होती हैं।
Thanks for appreciation @Arvind ji 🙏
Thanks so much sandeep ji
बिल्कुल सही
Thanks varsha ji
wahh bahut badiya
थैंक्यू बबीता जी
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