अरे मिष्ठी..अरे नन्ही...
आज कहांँ हो तुम दोनो आयी नहीं ...मेरे पास..नानी स्टोरी टाइम ...स्टोरी टाइम करके..."
अब देखो मुझे ही आना पडा..."
देखनें...कि क्या बात है.."
नानी आज हम कुछ सोच रहे हैं...इसलिए आज कहानी नही सुनेंगें ...बात करेंगें...आप हमारी बातो के जबाब तो दोगी ना नानी..'।
हांँ..हांँ क्यूंँ नही बोलो ...
कहांँ उलझ गयी मेरी दोनो गुडिया.."
नानी ..आपने हमको इतनी सारी परियों की कहानियांँ सुनायी ..सब कहानियों में कोई परेशानी में होता है ..फिर कोई परी आती है और वो मुश्किल हल कर देती है...फिर वो हैप्पी हो जाता हैं..।"
हांँ...बिल्कुल ऐसा ही.."
तो नानी हमारे पास तो कोई परी नही आती.."
क्या असली जिंदगी में परी नही होती ...नानी.."
"होती है बेटा..।"
फिर हमको क्यूंँ नही दिखती...क्या आपको दिखती है.."
हांँ..दिखती है और तुम्हे इसलिए नही दिखती ..क्यूंकि तुम उन्हे पहचान नही पा रही हो ..क्योंकी उनके पास पंख नही है..छडी़ भी नहीं है...एकदम हमारे तुम्हारे जैसी ही हैं..।"
कौन है नानी.... बताओ तो..।'"
बताती हूंँ..."
थोडा ओर सोचना होगा...!
सोचो जब..पिछले संडे को तुमसे खेलते हुए फोटो फ्रेम टूट गया था..तो तुम कितना घबरा कर आई थी मेरे पास....कि नानी मम्मी की डाँट से बचा लो आज ..।
फिर क्या हुआ..था..सोचो..।'
फिर मम्मी ने डांँटा ही नही...बस समझाया कि आगे से ध्यान रखना..कांच था.. तुम्हे लग भी सकता था ,कहकर .. गले से लगा लिया..।"
और आप बहुत मुस्कुरा रही थी नानी तब..."
हांँ..नन्ही क्योंकी नानी ने ही तो बचाया था डांट से ...पता नही क्या कहा था मम्मी से..।
ओह मिष्ठी फिर तो नानी ने परी वाला काम किया..""
हांँ नन्ही ..."
नानी ...तो आप परी हुई फिर तो...कह के दोनो हंँस पडी.."
हांँ बेटा ....ऐसी ही कितनी परियांँ तुम्हारे आस पास होती हैं जो मुश्किल वक्त में साथ देती हैं...जैसे तुम्हारी मम्मी...दादी..टीचर ...पापा ...दोस्त ...भाई ...बहन.और..तुम दोनो आपस में एक दूसरे की मदद करते हो ना.."
हांँ नानी...! सभी कभी ना कभी एक दूसरे की मदद करते हैं...बिना छडी घुमायें भी प्रोब्लम सोल्व करते हैं.."।
हांँ ..यहीं समझाना चाहती थी मैं तुम्हें...और तुम तो कितनी होशियार हो दोनो ...एकदम समझ गयी (और तीनो की हंँसी एक साथ कमरे में फैल गयी..)
लेकिन मिष्ठी और नन्ही एक बात और रह गयी बेटा..!
थोडा ज्यादा ध्यान लगाना होगा,
जी नानी...""
देखो बेटा एक परी और होती है सबसे अलग जो सबकी अपनी अपनी होती है और सबके साथ ही रहती है...।"
मतलब नानी...पर्सनल परी..."
हांँ...मिष्ठी और वो सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकी उसको महसूस किया जाता है केवल...देख नही सकते..।"
लेकिन कैसे नानी...नन्ही ने आंँखे चौडी करके पूछा.."
देखो बेटा ये परी हमारे भीतर रहती है...हमारी "इनर स्ट्रनैथ"
जो हमें हर कठिन वक्त में बचाव और सही निर्णय करने की समझ देती है ...और हमको अपनी मदद तब खुद ही करनी होती है...और अपनी इसी ताकत इसी ईच्छाशक्ति इसी भरोसे की मदद से हम बडी़ से बडी़ बाधा से बाहर निकल आते हैं..खुद का बचाव खुद करते हैं...अपनी मदद खुद..।""
अरे वाह नानी...ये पर्सनल परी तो बडी अच्छी हुई...हरदम साथ रहती है.."नन्ही बोली..।
एकदम सोनपरी के जैसी.." मिष्ठी ने चहकते हुए कहा..।
हांँ..बेटा लेकिन इस ताकत को पहचानना जरूरी है...महसूस करना जरूरी है...और उस पर भरोसा रखना भी.."।
हांँ...नानी...आज तो आपने असली जिंदगी की परियों से मिलवा दिया...।"
चलो अब सो जाओ दोनो सुबह स्कूल भी तो जाना है.."
जी नानी...""
गुड नाइट...दोनो को..."
गुड नाईट ..नानी..।"
©®Sonnu Lamba☺
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
👌
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