"यार सुम्मी, ये तो कोई बात ना हुई| तुम तो वहां मायके जाकर बैठ गयी और मैं यहां अकेला तड़प रहा हूँ.."
"मैंने तो कभी नहीं सोचा था भई कि शादी के बाद पहले सावन की ऐसे वाट लगा देंगे ये सो कोल्ड रीति रिवाज!"
"ये तो पहले से ही चला आ रहा है "जनाब" कि लडकियां शादी के बाद पहले सावन में पहली तीज मायके में मनाती हैं और ससुराल वाले बडे शौक से सिंजारा लेकर आते हैं| मेंहदी, चूडी, बिंदी, साडी, मिठाई, घेवर, कितना मजा आयेगा ना| कुछ बताया मम्मी जी ने, कब आ रहे हैं, यहां सिंजारा लेकर? मुझे भी कुछ तैयारी तो करनी होगी ना?"
"हां.. हां, करो तैयारी, दो चार बोरी नमक लाकर मेरे जख्मों पर छिडक दो, बडा मजा आ रहा है, मायके में|"
अब मोटर गाडी के युग में जब लडकियां आराम से जाकर अपने मायके में मिलकर आ सकती हैं, रोज रोज भी, तब भी वहीं जाके रहेगीं| पता नहीं बदलता कोई क्यों नहीं इन रिवाजों को? और सावन तो पूरे तीस दिन की बात है! मैं तो सोच रहा था कि तुम्हें अपने साथ ले आऊंगा यहीं अपने शहर, जहां मेरा ट्रांसफ़र हुआ है, काफी तैयारी भी की, दोनों के रहने लायक कमरा भी ढूंढा, बस आज मां को फोन करके बताने ही जा रहा था, वैसे ही मां ने बोल दिया, सुम्मी तो मायके चली गयी है...!
क्यों मां... ऐसे अचानक..!
मेरे मुंह से निकला, तो बोली कि सावन लग गया है आज से कुछ रीति रिवाज हैं, तीज तक की ही तो बात है, फिर ले आयेंगें और तू भी तो यहां है नहीं|"
वो अकेली करती भी क्या यहां मेरे पास, अपनी मां के पास रह लेगी थोडे दिन.. "
"लेकिन मां, मुझसे पूछा..... .भी नही... !"
अय हय, किसे पूछना था रे लल्ला, मुझे या सुम्मी को, जब थारी मां भेज रही है तो वो कै पूछेगी बेचारी और मैं थारे से ज्यादा जाणू, रीती रिवाज, तो क्यों पूछूं. ..आया बडा.. "'
लेकिन मां.. ."
सारी बातें मेरे हलक में ही रह गयी और मां ने फोन पटक दिया, और अब तुम... हीही कर रही हो.. "बडी आयी.. "।
मेरे रोमेंटिक सपनो का खून कर दिया तुम दोनों सास बहू ने मिलकर. ."
तो तुम आ जाओ यहां.. "मधुर, कोमल, स्वर, सुमित के कान में पडा.."
सुम्मी. ."
हूं.. "ओह, तो तुम भी मिस कर रही हो "
हां, तो, नहीं करूं...पहले ही इतना लम्बा वक्त हो गया तुमसे मिले और अब ये.. "
लेकिन यार.. मैं ससुराल में तुमसे, कम्फर्ट से बात तक नहीं कर पाता, और वैसे भी दामाद जी, दामाद जी करके सब पीछे पडे रहते हैं ..!
ओहो... बहुत भाव खा रहे हो, मैं भी तो अपने ससुराल में ही तुमसे सब बातें करती हूं, तो तुम क्यों नही..?
अभी तो बडा तडप रहे थे मिलने को, आने को कहा तो..!
अरे समझा करो सुम्मी, दो चार दिन की छुट्टी लेकर तो आ नहीं सकता,और दो चार घंटे वहां सब के बीच....!
तो रहने दो फिर... रहो वहीं, इंतजार करो.. !
सुनो... आता हूँ, इस संडे.. "
"सच्ची. ."
हां, सच्ची. ..लेकिन तुम्हारे घर नहीं आऊंगा, रेस्टोरेन्ट आ जाओ, वहीं जहां एक बार सगाई के बाद मिले थे.."।
लेकिन तब तो मजबूरी थी .."
अब तो घर पर आराम से मिल सकते.. "फिर भी.. "
अरे ..कहा तो कि ,वहां नही.. सबके संग, डेट ना होके, फैमिली संडे हो जायेगा.. "
और मैं जब मां को बोल कर जाऊंगी तो वो मान जाएगी कि दामाद जी यहां क्यों नहीं आ रहे.. "
तो मत बताओ ना.. "
फिर क्या बोलूंगी. ."
कुछ भी बोलो. .मुझे नहीं पता.. संडे ग्यारह बजे आ जाना, पूरा दिन साथ गुजारेंगें.."
और तुम्हारी मम्मी को पता चला तो.. "
तो क्या. ."
अपनी पत्नी से ही तो मिला था, बोल दूंगा, लेकिन तुम आ जाना, जानेमन आंखे तरस गयी, तुम्हें करीब से देखने को.. "।
रेस्टोरेन्ट की कोरनर टेबल पर दस मिनट से बैठा, सुमित कभी शीशे से बाहर देखता है, कभी घडी को... "
यार ये सुम्मी भी ना. ..दस मिनट पहले नी आ सकती, मैं तो दूसरे शहर से आ गया, और इनसे, इसी शहर में नी आया गया, थोडी बैचेनी और बहुत सारा रोमांच, मन से बाहर छलकने को तैयार... कभी लगता जल्दी से आ जाये और एक बार गले से लगा लूं दौडकर.. ! कभी सोचा ना था शादी के बाद भी ऐसे डेट पर मिलेंगें.. !
ये क्या पूरे ग्यारह बज गये, आयी नही. .."
ट्रैफिक में फंस गयी होगी.. फोन करूं.. "
बाहर जाकर देखूं.. ?सही नी लगेगा.. "
यहीं इंतजार करता हूं... थोडा लेट तो हो ही जाता है.. कभी कभी.. "।
वेटर भी दो बार आके चला गया... सर!.. .कुछ आर्डर,
अभी बस कुछ देर ओर.. मैं किसी का वेट कर रहा हूं.. "
ये क्या. ..बारिश होने लगी बाहर तो.. "
अब... कहां है पता नी. .."
कॉल करता हूं.... "
नोट रीचेबल.. सिट.. "
सारे मूड की वाट लग गयी, अब इतनी बारिश में कैसे आयेगी.. ?कहां तक पहुंची होगी..? घर चलूं उसके और वो यहां पहुंच गयी तो..?
साढे ग्यारह बज गये.. ."
सर. ..आर्डर. ."
ले आ मेरे भाई, एक कॉफी ले आ.. "
सुम्मी.. "यार... इतना इंतजार, नहीं पहुंच पा रही हो तो कोल करो प्लीज..!
तभी स्करीन पर नम्बर फ्लैश हुआ.. सुम्मी "
क्या सुम्मी कहां हो.. मैं इतनी देर से.. यहां. ..अकेला बैठा हूं, और तुम्हारा कुछ अता पता नहीं.. "
सुमित, मैं यहीं पास वाले सर्कल पर फंसी हूं, बारिश की वजह से गाडी खराब हो गयी, पानी भरा है, प्लीज तुम यहां से ले लो मुझे.. "
अच्छा रूको... पहुंचता हूं मैं,
और वो तेज कदमों से बाहर निकल गया. .पीछे से वेटर, सर आपका आर्डर.. "
वहां से निकलकर जल्दी से पार्किंग में आया, कि पीछे से आकर किसी ने कंधे पर हाथ रखा... और एक हाथ से आंखे बंद कर ली.. "
को.. कौन. ..चूडी वाले मुलायम हाथ. ."
सुम्मी.. तुम.. !
हां.... मैं, सुम्मी, खिलखिलाकर सुम्मी सामने आ गयी,
अरे यार कितना परेशान कर दिया तुमने मुझे पिछले एक घंटे से, जानती हो तुम.. उसने खीझते हुए बोला.."।
लेकिन सुम्मी ने मुस्कुराते हुए अपनी बाहें फैला दी, और दोनों किसी की भी परवाह ना करते हुए, वहीं गाडियों के बीच, एक दूसरे के गले से लिपट गये,... और बारिश....!
बारिश अब ओर तेज हो गयी थी... दूर से गाने की आवाजें आ रही थी...
"आओगे जब तुम, सजना... अंगना फूल खिलेंगें,
बरसेगा सावन.. बरसेगा सावन.. ..सजना, जब हम मिलेंगें...""।।
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
अहा...बड़ी रोमानी रचना
थैंक्यू डीयर ❤
Kya baat he very nice
सच !पढकर अच्छा ऐसा लगा की कहानी का ही पात्र बन गई,आपने इस अंदाज़ में लिखा ।
थैंक्यू जी, आप सबका
कमाल, मन किया बारिश में भीग जाऊं मैं भी❤️❤️
थैंक्यू, अवन्ति जी ❤
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