उसके भीतर एक लेखक कसमसाता था.....जो सब कुछ लिखना चाहता था.....खुशी..हंसी ..कौतूहल..समर्पण....प्रेम... ममता.. .सब कुछ...।
फिर एक दिन उसे प्यार हो गया...उसकी कलम बह निकली किसी अल्हड सी नदी की तरह..जो महसूस करता गया..सब लिखा उसने...प्रेम..में.. ..फूल ..खुशबु......रंग..तितली..दिल..धडकन..हंसी खुशी ..कौतूहल...। हर पल रोमांचित रहता था वो....।
यूं ही ..दिन बीत रहे थे कि...उसके भीतर का लेखक फिर उदास रहने लगा...सब कुछ यूं ही चलता रहा तो मै विरह कैसे लिखूंगा...? .कैसे लिखूंगा दर्द ..? उसको भी महसूस करना होगा पहले, और...वो अपने प्रेम को त्याग कर बहुत दूर चला गया..उसने तडप को महसूस किया..विरह को जिया...कलम ने आंसूओ से भीगे कई गीत रचे...!
लेकिन अभी भी उसके भीतर का लेखक अधूरा था... और उसकी आत्मा अपूर्ण ...क्योंकि कहीं दूर उसका नाम लेके कोई सिसक रहा था रोज..।
अब वो समर्पित हो जाना चाहता था ...अपनी कलम के साथ...ताकि कहीं कोई ना सिसके फिर.....उसके लिए..अब वो जीना चाहता था...जिंदगी के अनछुये एहसासो को..जिंदगी की रौ में बहते हुए..एक शांत झरने की तरह...।
Sonnu Lamba...💐
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