जैसे हमारा कोई पुराना वस्त्र फट जाता है तो हम उसे अलग रख देते हैं, और उसके स्थान पर नया वस्त्र धारण कर लेते हैं, बस वैसे ही है मृत्यु... जब शरीर पुराना और जर्जर हो जाता है, उसे त्याग कर सभी मनुष्य नया शरीर धारण कर लेते हैं ...एक पांच छ: बरस की बच्ची को ये गूढ ज्ञान देने वाले पिता ने बिना जर्जर हुए ही शरीर त्याग दिया, पता नहीं कहां और कब नया शरीर धारण कर लिया हैं, किया भी है या नही.. ? कुछ पता नही.. !
जब छ: बरस की अनभिज्ञ बच्ची कुछ नही समझ पाती थी, उसके लिए ये सब रहस्य था वैसे ही आज जीवन के चार दशक इस संसार में गुजारने के बाद भी ये रहस्य ज्यों के त्यों बरकरार हैं, उस बच्ची के लिए ..!
साक्षात्कार मृत्यु से ही हुआ है वो भी असमय होने वाली ,जिसकी भयावहता मन को अधीर कर जाती है, पिता के असमय जाने से घर में मुसीबतो के पहाड कैसे टूट पडते हैं ,ये सब बेहतर समझ आ चुका है.. .और उसका सामना करने की क्षमता, अधीर मन से भी सीधे खडे होने की ताकत, और संघर्षो में जूझते रहने का माद्दा, ये सब उसी पिता की जीवन शैली देखकर, समझाइश सुनकर ,हमेशा उत्साहित करते रहने की प्रवृति से ही आया है, और मैं ये कह पाती हूं ...कि हम कुछ भी नही होते पापा ..अगर तुम ना होते...!
पिता के बिना तो वैसे भी औलाद का कोई अस्तित्व ही नही होता.. एक बेटी का अपने पिता से स्नेह भी जगजाहिर है लेकिन पिता के साये में सुरक्षित महसूस करते हुए ,अपनी सुरक्षा सीख जाना, अपनी जिम्मेदारियों को आखिर तक निभाने का क्या महत्व है, ये समझ लेना, एक सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के प्रति हमारे क्या फर्ज हों व एक नागरिक होने के नाते, देश के प्रति कैसी निष्ठा ये सब बातें बिना किसी विशेष कक्षा और प्रशिक्षण के मैं सीख पायी हूं.. तो केवल अपने पापा की बातचीत सुनकर और व्यवहार देखकर, बडो का लिहाज, गांव ,मौहल्ले,परिवार सबसे प्यार ,ये भी उन्हीं के व्यक्तित्व का हिस्सा था..जिसे हमने आत्मसात किया..!
और शायद मैं ये सब कह पा रही हूं, लिख रही हूं, भावनाओं की अभिव्यक्ति भी मैं इसीलिए कर पाती हूं कि मेरा बचपन एक संवेदनशील और प्यार करने वाले पिता के साये में गुजरा है, और वो नींव इतनी मजबूत है कि उसी के दम पर हर अच्छे बुरे वक्त से हम गुजर पाते हैं और मैं फख्र के साथ कह सकती हूं, कि पापा ...आपकी शिक्षा नही होती , तो मैं इतनी संवेदनशील और सामाजिक ना होती...।
हालाकि कभी कभी बहुत खलता है उनका इस तरह और इतनी जल्दी दुनिया से जाना ,पूरे अठारह बरस हो गये, उनका हाथ सर से उठे हुए लेकिन उनकी दी हुई बेहतरीन शिक्षा हमेशा कवच की तरह साथ है, और उसी परवरिश ने व्यक्तिव में खरेपन की आभा भरी हुयी है, जो इस दिन पर दिन गिरते संसार में हमेशा गर्व का बोध कराती हैं.. हां, लेकिन एक बात ओर है.. कभी कभी उनकी बहुत याद आती है..।।
©सोनू लाम्बा
#पुण्यतिथि२९दिसम्बर
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