भगवन बस जल बरसा दे..
थोडी तो तू बारिश दे..
खेतो में धान रोपना है...।
मुन्नी की अम्मा कहती है..
छत तो ठीक करा लेते..
बारिश होगी तो..फिर छत टपकेगी..।
कोई बात ना भाग्यवान..
थोडा ओर सह लेना..
जब फसल धान की होगी अच्छी..
छत करवा दूंगा जरूर पक्की..।
दो दिन से आसमान देख रहे हैं..
लेकिन आसमान आग उगल रहा है..
बादल एक भी ना घुमड रहा है..।
पौध सूखती जाती है..
ग्राम परधान से मिन्नत कर ..
हरिया टयूबवैल से पानी फिर देता...
तब जाकर है धान रोपता ...।
लेकिन फिर भी खुश है..
फसल जैसे जैसे बढती है..
आंखो की चमक भी वैसे ही बढती ...।
अबकी फसल वाकई अच्छी है..
माटी मेरे देश की सोना उगले है..
अनाज किसानो का सोना ही तो है..।
फसल पक गई...कटने की सब तैयारी है..
आज आसमान में उमड घुमड भारी है...
हे भगवान...अब मत बरसना...
अपना तो यही चना चबैना..
फसल भीगी तो क्या खायेंगें ...
जीते जी हम तो मर जायेंगें..।
जुटेगा कैसे बच्चो का दूध भात..
छत तो अबके ढह ही जायेगी...
माटी के पुतर को फिर...
माटी में ही समाना होगा..।
परीक्षा इतनी कडी ये..कैसे करेंगें सामना..
डर के मारे सारा परिवार ..खेत में है जुटा..
बस फसल को एक बार घर जाने दे...
बादल तू अब तो जा...अब तो जाने दे..।।
©®sonnu Lamba☺
(कविता में किसान के मन की आशा निराशा को दर्शाया है...उसकी मजबूरियां कितनी बेसिक होती है....कविता को डर पर ही समाप्त कर दिया है...क्योंकी मैं दुखद अंत नही करना चाहती...वरना तो सभी जानते हैं ...वक्त के थपेडो से फसल की फसल नष्ट हो जाती हैं...किसानो की आत्महत्या की खबरे मिथक नही होती...कईं बार छोटे किसान जो कर्ज , फसल लगाने को बीज जुटाने को लेते हैं...उसी फसल को बेचकर चुका नही पाते... उसके ऊपर परिवार के खर्चे ...ऊंच नीच..और इमरजैंसी ...सब संभालता...धरती पुत्र पस्त हो जाता है..लेकिन मैं फिर भी अपने देश के किसान को हर हाल में मजबूत देखना चाहती हूं क्योंकी धरती से जुडा इंसान कभी हार नही सकता...बस थोडा सा साथ मिले अपने आसपास के लोगो का..और सरकार का.. .और ये तो सच है ही कि मेरे देश की धरती सोना उगले..।
जय हिंद..)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
आपकी लेखनी को पढ़ना सदैव ही सुखदायी होता है
धन्यवाद भाई @Kumar sandeep
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