धानी...!
धान की नयी नयी उगती छोटी छोटी पत्तियों का रंग....धानी..।
मानसून आने के बाद ज्यों ही पहली बारिश होती है , धान की बुवाई की गहमागहमी खेतो में शुरू हो जाती है , धरती मां पहले से ही तैयार बैठी होती है बारिश के इंतजार में जेठ के तपते सूरज से आहत होके ।
जैसे ही बारिश होती है, धरती हरषा जाती है और किसान पहले से तैयार की हुई पौध रोप देते हैं खेतो में , जमीन को लबालब पानी से भर दिया जाता है , उसकी पूरी प्यास बुझ जाती है तो वो अपना पूरा दुलार धान की पत्तियों में भर देती हैं, और खेतो में धानी चुनर लहलहाने लगती हैं, किसान की आंखो में चमक उग आती है , उसे अपने मिट्टी से सने हाथो से खुशबु आने लगती हैं , धरती मां के फलने फूलने का रंग है ....धानी..।
लोकगीतो में अक्सर स्त्रियां अपने भरतार से धानी चुनर की मांग करती दिखती हैं , वो इसलिए कि औरत और धरती कब अलग हैं, दोनो ही मां हैं, सृजन करना जानती हैं , और जब उनका सृजन ...उनकी कोख से निकल सबके सामने आता है तो प्रकृति धानी हो जाती हैं, मन धानी हो जाते हैं तो तन पर धानी चुनर ओढने का मन क्यों न करें...।
कुदरत के प्रिय रंग हरे में थोडा सा पीला सौभाग्य डाल दें तो तैयार हो जाता हैं , कुदरत की हंसी का रंग.. धानी ...।
ये भूख को शांत करने का रंग हैं, आंखो की भी और पेट की भी, धानी रंग से शुरूआत होती धान की फसल जब पकती है तो पेट की भूख मिटाती हैं...कितने बच्चो के दूध में भात समा जाता हैं...इस रंग से निकलकर ।
धरती मां हमेशा यूं ही धानी रंग में रंगती रहे ...बरसो बरस और सबको फलने फूलने को अन्न मिलें , इसी कामना...इसी विश्वास का रंग ...धानी..।।
©sonnu Lamba☺
(रंगो की बात.. सोनू के साथ)
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
आपकी लेखनी हमेशा ही प्रभावित करती है
चिंतन-मनन,सूझबूझ से लिखी गई एक बेहद उत्कृष्ट रचना
Thank you sandeep bhai 🌱🙏
सच में अद्भुत 🌹
थैंक्यू एकता जी
bahut badiya
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