दादा जी...दादा जी, टिन्नी कह रही थी कि जो मर जाते हैं, उनके फोटो पर हार पहनाकर रखते हैं, लेकिन बैठक में जो पापा की फोटो लगी है, उस पर तो हार नही पहनाया, किसी ने, उसकी ऊंचाई भी इतनी है कि मेरा छोटा सा हाथ भी तो नही जायेगा... रूही ने अपनी तोतली आवाज में कहा..!
चौधरी बलराज सिंह जानते थे कि रूही अभी बच्ची है, जो भी सुनती है, वही बोल देती है, वो तो ये भी नही जानती कि वो मात्र तीन बरस की उम्र में पिता के प्यार से महरूम हो गयी... कारगिल की लडाई में दुश्मनों से अपनी सीमा की रक्षा करता हुआ उनका इकलौता बेटा कैप्टन मनोज शहीद हो गया था...।
कलेजे पर पत्थर रखके उसके बचपन की कहानियां,उसकी लडाई की गौरव गाथा, रूही को सुनाते रहे हैं, हमेशा...! लेकिन आज उसके मुंह से ये सब सुनकर विचलित हो गये...।
दादा जी.. दादाजी बोलिए ना, आप क्या सोचने लगे, आपने मेरे सवाल का जबाब नही दिया...! रूही ने उनका हाथ पकडकर खींचा..।
चौधरी बलराज सिंह आंख की कोर से आंसू पोंछते हुए बोले, हां.. जो मर जाता है, उसके फोटो पर हार चढाते है,ठीक कहवै वो तेरी सहेली, ...
लेकिन मरा ना है मेरा बेटा, शहीद हुआ है शहीद.. बहादुरी से लडता हुआ... ऐसे जवान मरते नही, अमर हो जाते हैं, बिटिया...!
"अमर जवान.. " रूही ने दोहराया ..."
हां, अमर जवान... तेरा पिता अमर जवान है, उसका नाम इस देश की गौरव गाथा में हमेशा जीवंत रहेगा ...।
दादा जी ने फक्र से सिर ऊंचा करते हुए कहा...!
©sonnu Lamba 😊
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