पर्स से चाबी निकालकर ..नेहा ने तेजी से दरवाजा खोला और धम्म से सोफे पर गिर गई । कुछ देर ऐसे ही निढाल पडी रही फिर बडबडाने लगी...दिन ही खराब था आज का..। आज फिर रितेश से झगडा हुआ ..।
अनमने मन से उठकर किचन मे आई ..शाम के 7 बजे थे..चूल्हे पर चाय के लिए पानी रखा..खोलते पानी मे अपनी जिंदगी को महसूस किया...ये कैसी मुसीबत में फँस गई। एक तो घर से दूर ..दूसरे शहर में नौकरी के लिए ही पापा को कितनी मुश्किल से मनाया था.. बहुत खुश थी वो अपनी जॉब से.. उसी ऑफिस में उसका रितेश से परिचय हुआ..स्मार्ट इंटेलिजेंट पर्सनालिटी ..कोई सहज ही आकर्षित हो जाएं..। रितेश की दोस्ती से इस अजनबी शहर मे कभी अकेलापन ही नही लगा...दिन मानो पंख लगा कर उडने लगे..।
साथ बीतता वक्त और दोस्ती मिलकर प्यार में बदल गई..एक पल को लगा जैसे मुंह मांगी मुराद पुरी हुई..। रितेश की हर छोटी बडी बात को बिना ना नुकुर के मान जाती थी वो.. कभी उसका प्यार समझ, कभी उसकी सलाह....लेकिन उसकी पजसिवनेस हर गुजरते दिन के साथ बढने लगी..। ये मत पहनो.. वहां मत जाओ..। फेबु पर क्या करती हो..डिऐक्टिवेट कर दो..। डिपी लगाना जरुरी है क्या..कोई फूल पत्ती लगा लो। उसने समझाना चाहा..इतना पजेसिव होना ठीक नही.." बहुत एग्रसिव हुआ इस बात पर.....कितना डर गई थी वो उस दिन..।
"तुम्हे प्यार ,पजेसिव लगता है...गुस्से में बोला.. "
रितेश ...कोई भी रिश्ता हो उसमें इतना स्पेस तो होना ही चाहिए कि दोनो लोग खुल कर सांस ले सके..। तो अब तुम्हे घुटन होने लगी ..मेरे साथ..।
"नही ....ऐसा नही है.."
" कैसा है फिर.. "
उस दिन से वो सहमी सहमी रहने लगी.. समझ ही नही आता कि उसे कब क्या बुरा लग जाये..!
फिर एक दिन.. मुस्कुराके क्यूं बात करती हो किसी से भी.. "
"पर मैं...शब्द गले में ही दम तोड गये.. "
काम में भी मन लगना बंद हो गया.. और आज ...
" नेहा ..! तुम बात ही मत करो आफिस में किसी से.. मुझे सही नही लगता... "
"लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है.. बिना बात करें....काम कैसे होगा.. ?"
तो जॉब छोड दो... ?
"ऐसे कैसे छोड दूं.. ये जाब तो मेरा सपना है ..रितेश ..मैं भी तरक्की करना चाहती हूं..।"हम दोनो काम करते हुए ..अच्छे से सेटल हो जायेंगें..अपने घर में बात कर लेते हैं..। "
तुम्हारे लिए तो जॉब के मायने हैं.. ऑफिस स्टाफ के मायने है.. मैं कौन..? कहकर ...गुस्से में मुझे सडक पर ही छोड गया ..वो।
चाय का पूरा पानी खोल खोल कर जल चुका था..दुबारा पानी चढाया..चायपत्ती डाली ,देखा दूध ..दूध तो आज वो लाना ही भूल गई आफिस से आते हुए..!
अनमने मन से काली चाय को ही कप में छानकर ..दोबारा सोफे पर बैठ गई.. । सिर बेतहाशा दुख रहा था.. पर आज वो रितेश को मनाने का कोई तरीका नही सोच रही थी.. वो एक खराब रिश्ते में पडने की घुटन को सह रही थी बहुत दिनो से... ।
क्या करू....सोचते हुए ..चाय को सिप किया..तो अजीब सी कडवाहट मुंह में घुल गई..दर्द आंखो से बहकर गालो तक आने लगा.... उसने कप में बची चाय सिंक में उडेल दी..और आंसू पोंछकर. ..फोन उठाया .. अपनी डीपी बदलने के लिए....गैलेरी से पापा के साथ अपनी वो सेल्फी चूज की जो यहां आने से पहले ली थी....।
तभी पापा के वाटस अप स्टेटस पर नजर पडी.... "सही वक्त पर लिए गये कठिन निर्णय ...जिंदगी को आसान कर देते हैं।"
©sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Right
Thanks @ jatin
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