"मात पिता तुम मेरे शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा आश करूँ मैं जिसकी, "
सभी जानते हैं ये बहुत ही पोपुलर आरती की लाइनें है, लेकिन इन लाइनों का ही जिक्र क्यूँ..?
क्योंकि ये दिल से निकलती हैं, दिल को छूती हैं मेरे , मैं सबसे ज्यादा इन्हीं से जुडा़व महसूस करती हूँ, ईश्वर को मैनें हमेशा, माता पिता के रूप में ही महसूस किया है, चाहा है, बंधु और सखा जैसे कोन्सपेट मेरे मन को शांति नहीं देते।
इसका दूसरा पहलू ये भी हो सकता है कि आप कितने भी बडे़ हों उम्र के हिसाब से लेकिन बच्चा आप माता पिता के सामने ही महसूस कर सकते हैं।
खुद बच्चे जैसा महसूसना या हो जाना सुकून देता है, हमेशा..!
या तो आप अपने बायोलोजिकल माता पिता के सानिध्य में सुरक्षा महसूस करते हैं और ख़ुद को बच्चें जैसा सरल पाते हैं या फिर परमपिता के समक्ष और कहाँ भला..?
कुछेक सौभाग्यशाली लोग हैं जो बड़े भाई बहन या ताया चाचा से भी वैसा ही सानिध्य पा जाते हैं, लेकिन मैं उसमें से भी नहीं, जन्मदेने वाले माता पिता भी अब ईश्वर में ही समाहित है तो ईश्वर के सिवाय मन का बच्चा कहीं उजागर होगा भी तो कैसे ?
सभी के मन में रहने वाले बच्चें और वास्तव में जो उम्र के हिसाब से बच्चें हैं, सभी सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें ये कामना इस बाल दिवस पर..!!
और हरि प्रबोधिनी एकादशी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ...🌼
आनन्द के साथ देव दीवाली मनाएंँ.. खुश रहें.. खुशियाँ फैलाएं अपने चारो ओर..!!
✍️सोनू लांबा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
मनभावन आलेख
धन्यवाद
Please Login or Create a free account to comment.