अकेली कहां हो.. ?
भरा पूरा परिवार तो है..
हां, क्यों नही है.. !
लेकिन, पिता की तरह,
मजबूती से कोई नहीं बोलता ,
" मैं हूं ना.. "
मां की तरह, बरसो से किसी ने नहीं पूछा
कुछ खाया या नही..!
पहले कुछ खा ले, सब हो जायेगा ठीक.."
भाई की तरह, साथ नही खडा होता कोई,
बहन की तरह मेरी तरफ से नही लडता कोई..!
उन भरोसा देते एहसासो को ना पूरा कर सका कोई.. "
बहुत सारी जिम्मेदारी ..तानें और उलाहनें..
भर दिए जाते हैं..बस आंचल में,
फर्ज का हवाला देते लोग, प्यार नही देते,
लेकिन चाहते हैं ..वो लेना, केवल प्रेम .."
कोई उन्हें बताता क्यों नही , जो खुद रीत रहा हो,
वो कैसे देगा... कुछ किसी को..
अपने ही एकाउंट से पैसा निकालने को भी,
उसमें जमा करना पडता है पहले... ।।
©sonnu Lamba
Comments
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सुंदर.... निःशब्द
थैंक्यू सो मच
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