भाग.. 2
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पहले गाडी से नीचे उतारा गया उसको,फिर स्वागत हुआ...गृह प्रवेश हो गया...।
धीरे धीरे उजाला भी होने लगा ...अरे वाह काफी बडा घर है....बगीचा भी है...पंछी पेडो पर खेल रहे है....वैसे अक्सर गांव के घर ऐसे ही होते है.......खिडकी से झांककर और कुछ देख पाती इतने मे ऩनद अनु कमरे मे दाखिल हुई...।
भाभी चलो जल्दी तैयार हो जाओ....आज मुंह दिखाई है....।
औरतो का क्या भरोसा अभी आने लगेगी...और मेहमान भी जाने लगेगे.....स्नेहा जल्दी जल्दी अपने सामान निकालने लगी तैयार होने के लिए ...अनु उसकी मदद करने लगी...तभी उसका ध्यान गया बाहर से आती हंसी मजाक पर....शायद सब दहेज का सामान देख रहे हैं...उसी के बारे मे बात कर रहे है...स्नेहा के कान बरबस ही वहां जा लगे......।
सुनु तो जरा क्या बाते हो रही हैं......"
"देखो तो जरा dinner set....बहुत हल्का है.....!और ये कपडे जिसे दे रहे है,उसके हिसाब से लेने चाहिए ना ....कुछ भी खरीद के दे देते है लोग......।
स्नेहा की उमंगे उदासियो मे तब्दील होने लगी....।
" कोई नी शादी- ब्याह मे इस तरह की मजाक तो लोग करते ही हैं"....उसने खुद को मन ही मन समझाया और सहज होने की कोशिश की.....तभी कमरे मे दनदनाती हुई सासू मां का आगमन हुआ.....
" क्यूं री ....एेसी साडी पहनूं मैं...तेरी मां ने कभी मुझे साडी पहने नही देखा "....उन्होने साडी को हवा मे लहराते हुए कहा......"
स्नेहा सहम गई ...धीरे धीरे आवाज गले से बाहर निकली ......"अबकी बार जैसी आप कहोगी .....वैसी ले आऊंगी मम्मी जी..".....सासू मां जैसे आई थी वैसे ही बाहर चली गई....उसने अपनी ननद अनू की तरफ देखा जो बिना विचलित हुए उसकी साडी ठीक करा रही थी.....लेकिन स्नेहा जैसे जैसे श्रंगार कर रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे की चमक फीकी पड रही थी.।
भाभी आप यही इंतजार किजीए....मै आकर आपको ले जाऊंगी थोडी देर बाद.....कहकर अनु कमरे से बाहर निकल गई...स्नेहा धम्म से सोफे मे गड गई...बाहर से आते स्वर तेज हो रहे थे....मन पर दबाब बढ रहा था...वो समझ गई थी हंसी - ठिठोली के नाम पर जो महफिल लगी है.....दरअसल वो तानो का चक्रव्यूह है ,जिसमे वो अनजाने मे ही प्रवेश कर गई है....आंखे डबडबा आई..मन किया एकांत का लाभ लेकर ऱो ही लूं ....लेकिन रोई तो काजल फैलेगा...कोई भी पूछ लेगा...क्यूं रो रही है?
आंसूओ को भीतर ही भीतर पी गई.....किससे share करे ,सखी सहेली मां पापा कोई भी तो नही है यहां ,ओर फोन भी तो नही ......होता भी तो क्या कर सकती थी? इतने लोगो के बीच मे क्या बात करती....अब बेबसी भी उदासी का हिस्सा बन गई...।
तभी उसे सरल का ख्याल आया...वो कहां है?..."I m sure यहाँ होगा नही ....नही तो किसी ना किसी को तो टोकता जरूर".....खिडकी से झांकने को जी चाहा...वो अपना विश्वास दृढ करना चाहती थी ,सरल के प्रति.....बाहर देखने का प्रयास किया....कहां है?...वो तो वही बैठा था, बरामदे के कोने में चेयर पर ,एकदम neutral...... How is it possible ??
तु जानती ही कितना है ,उसे भी जो,
उससे अपनेपन की उम्मीद जोड ली...शायद रिश्ते के कारण.. "जीवनसाथी.....तो ...!"
इस बार काजल फैलने का डर भी आंसूओ को ना रोक सका....... ? स्नेहा खुद ही सहज होने की कोशिश मे लगी रही.......मन को छला सा महसूस कर रही थी....!.
तभी बाहर किसी ने कहा ,अरे बहू को मुंह दिखाई मे क्या देना है....प्रत्युतर मे किसी ने कहा दे देना कुछ भी, कौन सा इसके बाप ने ज्यादा दे दिया....मानो स्नेहा के पांव तले से किसी ने जमीन खींच ली.....मुंह दिखाई की रस्म मे अपनी बहु का सम्मान करते है लोग या किसी की बेटी का...?......सवाल कलेजे पर सलीब सा लटक गया !!.....समाप्त...!!
( कहानी एक सवाल पर समाप्त हुई है......जो आपके लिए है जबाब दीजीए please.... मेरी स्नेहा का मन भारी है.....तानो की प्रताडना से उसके अंदर का स्नेह दम तोड रहा है )
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Bahut dukhad....sapne dekhne se pehle tut Gaye Mano....par yahan use kamzor nahi hona, na hi Lok laaj ki parwah. Pati ki soch par ab aage nirbhar hai. Jeewansaathi saath de to phir koi parwah nahi. Agar uski soch bhi aisi ho to adjustment ya Dil jeetne wali koi baat hi nahi reh jati. No more adjustments or compromise. My personal thoughts.🙏
Thanks soniaa as you describe in detail.
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