समीक्षा नही लिख रही हूं ..जज्बात लिख रही हूं , जज्बात जो अनायास ही कहीं जुड जाते है ..मैं अक्सर कहती हूं कि कहानियां ,जिंदगी का हिस्सा होती हैं जो उन्हे इमेजिनेशन कहता है ,वो उसके लिए कल्पना हो सकती है लेकिन जरूर ना जरूर कहीं घट रही होती है वो किसी के लिए ..किसी की जिंदगी में ...तभी तो उनसे भावनाएं जुडती हैं ..।
दुनिया भर की मांए एक सी होती हैं ,तभी तो फिल्मकार जब पर्दे पर दिखाता है किसी मां को तो ,सामने दर्शक दीर्घा में बैठी मां सोचती है ये मैं ही तो हूं पर्दे पर ...."!!
पंगा में जया निगम एक ऐसी ही भारतीय मां के रोल में है जो बच्चे के लिए अपना टैलेंट और सपना छोड देती है और मां बनने के बाद खुद को घर तक ही सीमित कर लेती है और यकीन मानिए भारत के हर घर में ऐसी ही मां है ..लेकिन उस मां को पर्दे पर इस तरह प्ले करना लगे जैसे ये तो मैं ही हूं या बच्चे सोचे ..ये तो हमारी मां जैसी है ..फिल्मकार की पहली जीत है ..।
बच्चे का नाराज होकर ये कह देना कि आप करती ही क्या हो ,आप का काम तो इतना इम्पोरटेंट नही ,हर मां की आंख भिगो जाता है ..जबकि मां जानती है कि बच्चा नासमझ है लेकिन कोई भी मां दुनिया में सबसे ये सुन सकती है कि वो करती ही क्या है ..लेकिन अपने बच्चों से नही , क्योंकी मां बनने के बाद वो जीती ही उन्हीं के लिए है ..।
एक गृहस्थी में आयी औरत शादी के बाद ..कहीं भी चली जाए ..कुछ भी करें लेकिन हर समय अपने पति ,बच्चे और घर को याद रखती है ,वो याद रखती है कि उसका घर ,उसके बिना अधूरा होगा ,वो याद रखती है कि घर का कोना कोना उसे मिस कर रहा होगा ..।
वही हैं रास्ते ..
वही हैं घर ..वही हैं जीने का सामान ..
तुम थी तो जैसे , जिंदा थे सारे ..
तुम बिन लगे बेजान ...
हर चीज मुझसे पूछे ...
तुम हो कहां ....""
ये डायलॉग है कि "मां के कोई सपने नही होते औरत को मां हो जाने के बाद कोई भी सपने पालने का हक नहीं .."
लेकिन सच तो ये है कि सपने तो सभी के होते हैं ,लेकिन वे पलको के भीतर ही दम तोड देते हैं या उनको को मन के किसी अंधेरे कोने में छिपाकर छोड दिया जाता है .. । कभी कभी जब अपना सुनहरा अतीत सामने आ खडा होता है तो वो सपने गुस्ताखी कर ही जातें हैं ,उन्हे कितना भी कहा हो कि झांकना नही बाहर ...और वर्तमान में अपनी गुमनामी देख टीस तो उठती ही है ..। और फिर मन होता है दहलीज से बाहर पैर रखने का लेकिन गृहस्थी की कीमत पर नहीं ..।।
ऐसे में जरूरत होती है कि जीवनसाथी आगे आये और पुश करें ...फिर मेहनत करती हुई औरत हिचकती नहीं और अपने घर के प्रति और समर्पित हो जाती हैं ...और कहती है कि ..".मैं अपनी हद देखना चाहती हूं.."
हां ,भारतीय परिवेश में इस तरह के कूल और सहयोगी पति नही हैं ..लेकिन वक्त बदल रहा है ,आने वाले समय में ऐसे पति भी अपने आसपास दिख रहे होंगें ...और बच्चे ,वो तो स्मार्ट है हीं आजकल ..बस जरूरत है कि वो जमीन से जुडे रहें ..।
बाकी फिल्मकार ने एक मां के कम बैक करने में कैसी परेशानीयां होती हैं ,इन सबको समेटा हैं ..और क्योंकी फिल्म है तो अंत भी सुखद है ,जबकि जिंदगी में हमेशा अंत भले नहीं होते ..।
लेकिन फिल्म से इतर ...एक मन की बात ये है कि अगर आपका कोई सपना ,आपने मन के किसी अंधेरे कोने में रखकर छोड दिया है और उस पर वक्त की धूल चढ गयी है तो निकालिए उसे एक दिन बाहर ..झाडिए ..और थोडी़ धूप दिखा दिजीए ना ..याद किजीए ,सपना भी तो आपने कभी बच्चे की तरह ही सहेजा था ना ..फिर एक बच्चे के लिए दूसरा बच्चा उपेक्षित क्यूं ..?
इसलिए जिंदगी अगर मौका दे ..तो हाथ बढाइये ..अपनी पूरी जान लगाकर छू लिजीए ,उस मौके को ...।।
©® sonnu lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
जी, पंगा वास्तविक कहानी से inspired है
हां ,
Nice review
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