मां की खांसी रूकने का नाम ही नही ले रही थी... वो खुद भी यूं ही करवट बदल रही थी, अब मां की तकलीफ देखी नही जाती थी, अपनी ओर से पूरा प्रयास करती कि उनका ख्याल रखूं लेकिन जीविका के लिए भी दौडना पड रहा था, जब से पुरानी नौकरी छूटी , नयी मिलने का नाम ही नही लेती थी, दिन भर एक ओफिस से दूसरे ओफिस के चक्कर काटती और रात में आकर घर का काम करती जो बचत थी वो खत्म हो रही थी, ऐसे मुश्किल दिनो में कम से कम ये छोटा सा घर तो अपना था, यही तसल्ली रहती, केवल..।
आज तो मां ज्यादा ही खांस रही है..! वो अपनी खाट से उठी और थोडा गरम पानी करके मां की दवाई की शीशी उठा लायी ,लो मां ये पी लो.. "
"अरे ये क्या दवा तो खत्म... एक बूंद भी नहीं.. "ऐसा कैसे हो गया, मेरे ध्यान से कैसे निकल गया..? ये तो कल ही खत्म हो गयी थी, अब रात कैसे कटेगी ..।
रात के दस ही बजे थे लेकिन बाहर गुप अंधेरा था, दो घंटे से तेज बारिश हो रही थी ...! लाइट गयी हुई थी, इसलिए स्टरीट लाइट नही जल रही थी,उसने मेन गेट पर आकर देखा.. बहुत ही अंधेरा था, लेकिन गली के नुक्कड़ पर दूर रोशनी चमक रही थी, इसका मतलब मेडिकल स्टोर खुला होगा..!
अभी जाकर मां की दवा ले आऊं क्या..?
"वो खुद से ही पूछने लगी.."
ठीक रहेगा, इतने अंधेरे में जाना.. सोच ही रही थी, तभी मां को फिर से तेज खांसी आने लगी,
"मां पानी पीओ.. थोडा "वो मां की पीठ सहलाने लगी, थोडा आराम तो हुआ लेकिन अभी तो पूरी रात है..! सोचकर उसने अपना छाता लिया, हाथ में पर्स लिया और चल पडी, अंधेरे में पैर ऊंचा नीचा पडता जाता सडक पर बडा संभलकर चलना पड रहा था, गली भी सुनसान ही थी, बस रोशनी की दिशा में चली जा रही थी, तभी सामने एक गड्ढे में छपाक से गिर गयी, जल्दी से उठी तो देखा, उसी मोड पर चार लडके सिगरेट के कश लगा रहे थे, एक शैड के नीचे... और दूर दूर तक कोई ना दिखता था, और वे भी जाने पहचाने नही लग रहे थे... वो भीतर तक सिंहर गयी और अपने कपडे ठीक करने लगी, उनमें से एक अजीब सी हंसी हंसा और उसके करीब आ गया,
"मैडम इतनी रात को ..किधर"
"वो कुछ बोलती.. इतने में बाकी के तीन भी वहां आ गये.. "
अब वे उसे घेरकर खडे हो गये.. "
उसने हिम्मत करके कहा... सामने से हटो, मुझे स्टोर से दवा लेनी है..।
लेकिन वे नही हटे, और छेडने लगे, एक ने तो हाथ पकड लिया, उसे बहुत गुस्सा आया, उसने उस लड़के को धक्का दिया और भागने लगी... "
जैसे ही मैडिकल स्टोर के पास पहुंची, स्टोर का शटर डाउन हो चुका था..।
उसने पीछे मुडकर भी नही देखा था, सोचा था, स्टोर पर पहुंच जाऊंगी तो हैल्प मिल जाएगी और दवा भी, लेकिन अब.. वो एक साइड में छुप गयी दुकान के.. वे चारो लडके उसे ढूंढ रहे थे, लेकिन अंधेरा उसका साहयक बना , उसने दम साध लिया और दीवार से चिपक गयी, जैसे ही देखा कोई हलचल नही है ,धीरे से वहां से निकली और आसपास नजर डाली, घर के लिए वापस जायेगी अकेली तो वे गुंडे रास्ते में ही हो सकते हैं, मां की दवा भी नही मिली, रूलाई फूट रही थी... "।
क्या करूं...तभी देखा स्टोर के आगे मोड पर जो छोटा सा शिव मंदिर है, वहां से हल्की सी रोशनी आ रही है, शायद मंदिर के अंदर दिया जला हो..!
क्या पता पुजारी जी भी हों, अभी.. "
लेकिन इतनी भयानक बरसात की रात में, अब तो वक्त भी बारह का होने आया, घर में मां का क्या हाल हो रहा होगा, सोचती और रो पडती, कपडे भी गीले हो गये थे, वो तेज कदमो से मंदिर की ओर बढ गयी, कोई हो ना हो भगवान तो होंगें ही, कुछ नही तो छिप तो सकेगी वहां..।
वो मंदिर में प्रवेश कर गयी ,सामने आले में दिया टिमटिमाता था और भगवान शिव पूरे रौब से विराजमान थे वहां, वो हाथ जोडकर धम्म से बैठ गयी, मन किया जोर से चिल्लाये, ये कैसी घडी दिखायी प्रभु, इतनी भयानक रात तो कभी ना देखी थी, ज्यादा दूर घर नही है लेकिन जाने के लाले पडे, घर में बीमार मां अकेली..।
वो सुबक पडी.. तभी पीछे से आवाज आयी.. कौन..?
इतनी रात को मंदिर में रोता है..! पीछे पुजारी जी खडे थे,
बेटी... तुम, इस वक्त, क्या परेशानी है..?
काका घर जाना है, दो घंटे से यहीं भटक रही हूं, केवल सात सौ मीटर दूर घर होगा, लेकिन अजीब परिस्थितियों में फंस गयी हूं, उसने सब हाल कह सुनाया... तुम चिंता मत करो बेटी, भोलेनाथ सब भली करेंगे, मैं तुम्हें घर भिजवाता हूं, अभी फोन करके पडोस के शर्मा जी से गाडी मंगवाता हूं, हालाकि इस वक्त सब सो रहे होंगें लेकिन फिर भी कोशिश करता हूँ..।
पुजारी जी के कहने से शर्मा जी का ड्राइवर गाडी लेकर आ गया दस मिनट में, और पुजारी जी की ताकीद पर उसे घर छोडने आया..।
अब उसने चैन की सांस ली और दरवाजे का फटाफट ताला बंद कर धीरे से अंदर आ गयी, मां सो गयी थी, मां की चादर ठीक की, और एक गिलास पानी पीकर, अपने बिस्तर पर बैठकर इस भयानक रात के बारे में सोचकर फिर से पसीना पसीना हो गयी..।
और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कहा.. कि जैसे तैसे आज सही सलामत वो घर वापस आ सकी..!!
©®sonnu Lamba
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
रचना का प्रारंभ और मध्य पढ़कर रोम रोम सिहर गया। सचमुच कष्टदायक स्थिति से दोचार होना पड़ा। हर तरह के लोग हैं इस दुनिया में कुछ पापी तो कुछ नेकदिल। रचना का अंत सुखद रहा । माँ ही बच्चों का ख़्याल अच्छे से नहीं रखती है बच्चे भी माँ का ख़्याल रखने के लिए माँ की देखभाल के लिए मुश्किलों से लड़ते हैं।👌👌🙏🏻🙏🏻
बेहतरीन लेख👌👌
@एकदम सही कह रहे हो संदीप, माता पिता और बच्चे, दोनो एक दूसरे के पूरक हैं...! कहानी, पढकर बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए, धन्यवाद 😍
@नेहा, बहुत बहुत धन्यवाद 🌸
Thrilling.. सोच कर लगा कि किसी को ऐसी स्थिति का सामना ना करना पड़े.. Emotionally connected with the character 💝, बहुत ही बढ़िया लिखा है
@sushma, बहुत बहुत धन्यवाद सखि, लिखना सफल हुआ..!
सच मे कहानी थ्रिलर और रोमांच से भरपूर थी। पर अंत भला सो सब भला बहुत बढ़िया @sonnu ji
@बबीता जी, बहुत बहुत धन्यवाद सखि
बहुत सुन्दर और अंत सुखद हुआ
Thanks @varsha sharma
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