खत...!
हां ,खत ही तो थे वे.. जो शाम के धुंधलके में, बहते पानी पर पडती रोशनी की अठखेलियों के बीच बहे जा रहे थे, लगता था जैसे रंगबिरंगे फूल हों , जैसे पूजा के सूखे फूल..।
पूजा के फूल..!
हां पूजा की तरह ही तो लिखा गया था उन्हें नियमित रूप से रोज, पूरे मन से, उन खतो में उडेल दिया था पूरा का पूरा मन ही..।
मन..!
हां, मन में आ बसा था एक चितचोर एक ओर उम्र का नाजुक दौर, और दूसरी ओर उसकी संगत में वक्त का पता ही ना चलता, हंसना, मुस्कुराना, रोना, गाना सब एक साथ लगता ही नही था कि वो अनजान है,वो लगाव महसूस करने लगी थी लेकिन कहती नही थी, लिख देती थी, सब भाव.. उन खतो में..।
भाव..!
भाव... एकदम शुद्ध थे, प्रेम में पगे,दुनियादारी के छल से रहित, स्वार्थ से परे लेकिन फिर भी दुनिया की नजर में आये, सवालो के घेरे स्नेह पर भारी पढे.. और खिंचाव पैदा होने लगा..।
खिंचाव..!
खिंचाव.. शिकायतों में बदला, झगडा, लडाई, जैसा सम्बन्ध होता गया, बंधन को नाम देने की एक कवायद शुरू हो गयी, और बहुत सारा तनाव पसरने लगा, दोनों के बीच..।
तनाव..!
तनाव.. प्रेम को दीमक की तरह खा जाता है, रिती रिवाज रस्म, स्नेह को तजरीह कहां देते हैं, दुनियादारी में रिश्ते बनाने के लिए बहुत चीजो का मिलना जरूरी होता है..।
रिश्ता..!
सामाजिक रिश्ता बन नही पाया,स्नेह का रिश्ता कमजोर पड गया और फिर एक दिन जाने कहां वो चला गया बिना कहे, बिन बतायें.. शायद समय की यही दरकार थी.. और वो उन खतो को भी उसे ना दे पायी जो उसी के लिए लिखे थे..।
साल..!
सालो बीत गये, अब उन खतो को आजाद करने की सोची और यहां चली आयी, नदी के किनारे ,उन्हें बहा दिया बहते पानी में.. हां उसकी पूजा के सूखे फूल ही तो थे वे जो वक्त की आंधी में मुरझा गये थे..।
मुक्ति..!
मुक्त हो गये सब भाव, मुक्त हो गया प्रेम, धुलते गये सब गिले पानी में घुलती स्याही की तरह.. मन जो कसैला हो चला था, कुछ निर्मल तो हुआ.. भूल जाना या भूला दिया जाना इन सबसे परे, बस वक्त के एक मखमली हिस्से की तरह मन में संजोया आज फिर से उसने उन यादो को ..।
यादें..!
स्नेह की.. प्रेम की.. दोस्ती की... जिंदगी की खूबसूरत यादें..वक्त का एक मखमली टुकडा..।।
©®sonnu Lamba
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